School Recruitment Scam : भर्ती घोटाला मामले में पार्थ चटर्जी को जमानत, लेकिन अभी भी रहेंगे जेल में

Fri, Sep 26 , 2025, 03:02 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में करोड़ों रुपये के स्कूल भर्ती घोटाले (School Recruitment Scam) में 2022 से जेल में बंद राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी (Partha Chatterjee) को उनके खिलाफ लंबित अंतिम मामले में शुक्रवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय (Calcutta High Court) से सशर्त जमानत मिल गयी, लेकिन उन्हें अब भी कुछ और दिन जेल में रहना होगा। पार्थ चटर्जी प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के दायर सभी मामलों में जमानत मिलने के बावजूद तुरंत रिहा नहीं हो सकेंगे। इसकी वजह यह है कि उच्चतम न्यायालय के निर्देश हैं कि उन्हें कम से कम तब तक जेल में रहना होगा जब तक आरोप तय नहीं हो जाते और शुरुआती गवाही दर्ज नहीं हो जाती।

 शीर्ष अदालत ने पहले निर्देश दिया था कि चार सप्ताह के भीतर आरोप तय हों और महत्वपूर्ण गवाहों के बयान दो महीने में पूरे हो जाएं। न्यायमूर्ति शुभ्रा घोष ने उनकी ज़मानत याचिका पर 15 सितंबर को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। अदालत ने चटर्जी की जमानत पर कड़ी शर्तें लगायी हैं। अदालत ने कहा है पूर्व शिक्षा मंत्री किसी भी सरकारी पद पर नहीं रह सकते और वे गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास नहीं करेंगे, उनको पासपोर्ट जमा करना होगा और उन्हें जांचकर्ताओं से सहयोग करना होगा। अदालत ने उनको बतौर विधायक काम करने की अनुमति दे दी है।

गौरतलब है कि चटर्जी को जुलाई 2022 में ईडी ने गिरफ्तार किया था। तब उनकी करीबी सहयोगी अर्पिता मुखर्जी से जुड़े दो आवासों से लगभग 50 करोड़ रुपये की नकदी, करीब 60 करोड़ रुपये मूल्य का सोना, अन्य आभूषण और संपत्ति जब्त की गई थी। बाद में उनका नाम ग्रुप सी, ग्रुप डी और स्कूल शिक्षकों से जुड़े कई भर्ती घोटाले के मामलों में सामने आया। इसके बाद सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार किया।

इस महीने की शुरुआत में, अलीपुर की एक विशेष सीबीआई अदालत ने उन्हें कक्षा 9-10 और 11-12 के लिए शिक्षकों की भर्ती से संबंधित मामले में 7,000 रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दे दी थी। इसके बाद केवल प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती का मामला बचा था। सीबीआई ने उनकी रिहाई का कड़ा विरोध किया है और उन्हें घोटाले का "मुख्य साज़िशकर्ता" करार दिया है। एजेंसी का तर्क था कि भले ही वे अब मंत्री न हों, लेकिन अगर रिहा होते हैं तो वे जांच को प्रभावित कर सकते हैं।

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