कोहिमा: लोकतंत्र का यह भी एक बेहद खूबसूरत चेहरा है. लेकिन इसमें उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के लिए महाराष्ट्र में टेंशन गहरा है. नागालैंड में बीजेपी-एनडीपीपी (BJP-NDPP) के गठबंधन की सरकार बन रही है. पहली बार सर्वदलीय सरकार का गठन हो रहा है. यानी राज्य में कोई भी विपक्षी दल नहीं होगा. एनसीपी और जेडीयू ने भी बीजेपी गठबंधन का सपोर्ट करने का फैसला किया है. यह कहने की जरूरत नहीं है कि बिहार में जेडीयू और बीजेपी और महाराष्ट्र में एनसीपी और बीजेपी एक दूसरे की विरोधी हैं. फिर भी जेडीयू और एनसीपी ने बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान किया है.
इस तरह नागालैंड (Nagaland) में सीटें जीतकर आईं सभी पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया है. जाहिर है कि जब सर्वदलीय सरकार बनेगी तो राज्य में कोई विपक्ष नहीं रहेगा. दरअसल यहां एक बात की खूबसूरती भी है और मजबूरी भी. दरअसल किसी भी विपक्षी पार्टी को दो डिजिट के नंबरों में सीटें नहीं आई हैं. विरोधी दलों में शरद पवार की एनसीपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है. लेकिन एनसीपी भी दस का आंकड़ा नहीं छू पाई. एनसीपी (NCP) ने यहां सात सीटें जीती हैं. ऐसे में विपक्षी पार्टी होने का दावा करने की स्थिति में ना होने की वजह से एनसीपी ने सहयोगी दल बनना ही सही समझा है.
NCP ने BJP को कभी अछूत नहीं माना, जरूरी है ठाकरे को यह समझ आना
महाराष्ट्र और देश की राजनीति में एनसीपी बीजेपी की कट्टर विरोधी समझी जाती है. लेकिन शरद पवार को करीब से जानने वाले इस बात पर यकीन नहीं करते हैं और वे सही करते हैं. मिसाल के तौर पर 2014 के चुनाव मोदी के उदय के वक्त की बात करें तो महाराष्ट्र में बीजेपी में बड़ी तादाद में एनसीपी कार्यकर्ता (NCP workers) और नेता शामिल हुए. आज भी कई लोगों के लिए यह रहस्य है कि वे एनसीपी से रुठ कर बीजेपी में आ रहे थे या मोदी की लहर को भांप कर शरद पवार ही बैक डोर से उनकी एंट्री करवा रहे थे.
पवार जो बोलते हैं, वो करते हैं- जो नहीं बोलते, डेफिनेटली करते हैं
फिर दूसरी मिसाल मिलती है जब 2024 के चुनाव की काउंटिंग ही शुरू थी कि एनसीपी ने बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया. इस तरह ठाकरे की शिवसेना का बीजेपी से ज्यादा मंत्रिपद ऐंठने के प्लान को चौपट कर दिया. फिर बेहद अपमानजनक तरीके से उसे बीजेपी के साथ रहना पड़ा और सब सहना पड़ा. 2019 के चुनाव के बाद एनसीपी और बीजेपी में आपसी सहयोग की तीसरी मिसाल तब मिलती है जब अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस ने मिलकर सुबह सरकार बनाने के लिए शपथ ली थी.
यह रहस्य हाल ही में देवेंद्र फडणवीस ने हमारे सहयोगी न्यूज चैनल TV9 मराठी को दिए इंटरव्यू में खोल दिया कि अजित पवार ने एनसीपी से बगावत नहीं की थी बल्कि वह शपथ ग्रहण शरद पवार की सहमति से हुआ था. जब सवाल उठे तो शरद पवार ने बहुत बाद में जवाब में कहा कि उन्होंने ऐसा महाराष्ट्र को राष्ट्रपति शासन से बचाने के लिए किया.
पवार को कोई समझ पाए, ऐसा भूतो ना भविष्यति
यानी साफ है कि शरद पवार ने अपने जीवन में कई ऐसे फैसले किए हैं जो पर्सेप्शन से हट कर रहे हैं. शरद पवार को जानने और समझने वालों के लिए नागालैंड में एनसीपी का बीजेपी गठबंधन की सरकार को समर्थन देना चौंकाता नहीं है. बस सोचने वाली बात यह है कि यह उद्धव ठाकरे को समझ आता है, या नहीं है? कहीं ऐसा ना हो जाए कि उद्धव ठाकरे अपनी ऐंठन में रह जाएं और आने वाले कल में कोई ऐसा संयोग बने कि बीजेपी और एनसीपी मिलकर महाराष्ट्र में कुछ कर जाएं और ठाकरे सर खुजाते रह जाएं.
पवार को कोई जान पाए, ऐसा भूतो ना भविष्यति…बस यह तय है कि पवार बने रहते हैं सत्ता के साथ भी, सत्ता के बाद भी. यह मंजिल पूरी होती हो तो उनके लिए यह भी सही और वो भी सही. बाकी उद्धव यह ना समझें, अब इतने भी मासूम हैं तो…फिर यह है उनकी गलती
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Wed, Mar 08 , 2023, 03:20 AM