Diwali Celebration: सन नियो की अभिनेत्रियाँ मेघा रे, गौरी शेलगांवकर और अनंदिता साहू ने साझा की अपनी खास दिवाली की यादें!

Sun, Oct 19 , 2025, 11:12 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

मुंबई: सन नियो की अभिनेत्रियाँ मेघा रे, गौरी शेलगांवकर और अनंदिता साहू ने अपनी खास दिवाली की यादें प्रशंसकों के साथ साझा की है। इस दिवाली, सन नियो की तीन लोकप्रिय अभिनेत्रियाँ 'दिव्य प्रेम: प्यार और रहस्य की कहानी' की मेघा रे, 'प्रथाओं की ओढ़े चुनरी: बींदणी' की गौरी शेलगांवकर और 'सत्या साची' की आनंदिता साहू ने अपने बचपन की दिवाली की यादों और इस साल के उत्सव की तैयारियों को साझा किया।

'दिव्य प्रेम: प्यार और रहस्य की कहानी' में दिव्या का किरदार निभा रहीं मेघा रे ने कहा, , "नवरात्रि के बाद ही एक अलग-सी खुशी महसूस होती है, क्योंकि दिवाली के आने की बेसब्री बढ़ जाती है। जब मिठाइयों, फूलों और दीयों की खुशबू हवा में फैलती है, तो लगता है मानो पूरा वातावरण जादुई हो गया हो। मेरे लिए दिवाली परिवार के साथ बिताने का खास समय होता है, जब घर की सफाई, सजावट, दीए प्रज्वलित करना, यह सब हम साथ मिलकर करते हैं। मुझे पटाखे फोड़ना ज्यादा पसंद नहीं है, क्योंकि मेरे घर में पालतू जानवर हैं और मैं जानती हूँ कि तेज़ आवाज़ से जानवरों और पक्षियों को कितनी परेशानी होती है। इस साल मैं दिवाली अपने परिवार के साथ-साथ 'दिव्य प्रेम' के सेट पर अपनी नई फैमिली के साथ भी मनाऊँगी।"

प्रथाओं की ओढ़े चुनरी: बींदणी में घेवर का किरदार निभा रहीं गौरी शेलगांवकर ने कहा,, "दिवाली हमेशा से मेरा सबसे पसंदीदा त्यौहार रहा है। बचपन से ही जैसे ही त्यौहार का समय आता था, मैं बहुत उत्साहित हो जाती थी। माँ तरह-तरह के पकवान बनाती थीं, जैसे कि लड्डू, चिवड़ा, चकली और बहुत कुछ। मुझे और मेरे भाई को चकली सबसे ज्यादा पसंद थी और हम उसे खाकर इतनी जल्दी खत्म कर देते थे कि माँ को फिर से बनानी पड़ती थी। मुझे घर के बाहर बड़ी-बड़ी रंग-बिरंगी रंगोली बनाना भी बहुत अच्छा लगता था। इस साल मैंने 'प्रथाओं की ओढ़े चुनरी: बींदणी' की शूटिंग से कुछ दिन की छुट्टी ली है, ताकि घर जाकर परिवार के साथ दिवाली मना सकूँ। मैं बेसब्री से इंतज़ार कर रही हूँ कि मैं घर का खाना परिवार के साथ खाऊँ और इस त्यौहार को खूब एंजॉय करूँ।

'सत्या साची' में सत्या की भूमिका निभा रहीं आनंदिता साहू ने कहा, "कुछ यादें कभी फीकी नहीं पड़तीं और ओडिशा में बिताई मेरी बचपन की दिवाली उन्हीं में से एक है। मुझे याद है, कार्तिक पूर्णिमा के दिन हम सब महानदी के किनारे दीए जलाते थे, पूरा शहर दीयों से जगमगा उठता था और छेना पोड़ा और मंगल मिठाइयों की खुशबू इसे और खूबसूरत बना देती थी। आज भी वो यादें मेरे चेहरे पर मुस्कान ला देती हैं। इस साल भी मैं दिवाली पारंपरिक तरीके से मनाऊँगी जैसे घर को झोटी (रंगोली) से सजाऊँगी, दीए जलाऊँगी, पूजा करूँगी और घर की बनी मिठाइयों का आनंद लूँगी। साथ ही, मैं अपने 'सत्या साची' परिवार के साथ भी सेट पर मिठाइयाँ बाँटकर यह त्यौहार मनाऊँगी। आखिर दिवाली का असली अर्थ ही है प्यार, रोशनी और खुशियाँ बाँटना।

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