Navratri 2025 Day 2: देवी दुर्गा को समर्पित भक्ति, नृत्य और सांस्कृतिक वैभव का नौ दिवसीय उत्सव 22 सितंबर से शुरू हुआ और 2 अक्टूबर को दशहरा या विजयादशमी के साथ समाप्त होगा। नवरात्रि के दूसरे दिन, भक्त तपस्या और अटूट भक्ति की प्रतीक देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि वह अपने भक्तों को शक्ति, बुद्धि और दीर्घ, उद्देश्यपूर्ण जीवन प्रदान करके अकाल मृत्यु से बचाती हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन के महत्व, शुभ मुहूर्त, रंग और पूजा विधि जानने के लिए आगे पढ़ें।
माँ ब्रह्मचारिणी कौन हैं? उनका क्या महत्व है?
दुर्गा का दूसरा रूप, माँ ब्रह्मचारिणी, देवी पार्वती के तपस्वी और अविवाहित रूप का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो भक्ति, तपस्या और आध्यात्मिक शक्ति की प्रतिमूर्ति हैं। उन्हें एक नग्न देवी के रूप में दर्शाया गया है, जिनके दाहिने हाथ में माला और बाएँ हाथ में कमंडल है।
हिंदू धर्मग्रंथों और द्रुक पंचांग में वर्णित अनुसार, ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पत्नी रूप में प्राप्त करने के लिए हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। इस दौरान, उन्होंने फूल, फल और पत्तेदार सब्ज़ियाँ खाकर अपना जीवनयापन किया और फिर उन्हें त्याग दिया। उन्होंने कठोर मौसम की मार झेली और अटूट संकल्प के साथ उपवास किया। एक समय ऐसा आया जब उन्होंने अन्न-जल पूरी तरह त्याग दिया और अपर्णा नाम धारण किया।
उनकी तपस्या से अंततः भगवान शिव प्रसन्न हुए और उनका मिलन हुआ। हालाँकि, उन्होंने आत्मदाह करके अपने विवाह को समाप्त कर दिया, क्योंकि वह एक ऐसे पिता की पुत्री के रूप में पुनर्जन्म लेना चाहती थीं जो उनके पति भगवान शिव का आदर और सम्मान करता हो। यह त्याग और अटूट भक्ति नवरात्रि पूजा में ब्रह्मचारिणी के महत्व को रेखांकित करती है।
उन्हें ब्रह्मचारिणी इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी तपस्या के अंतिम चरण में, भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए ब्रह्मचारी का वेश धारण किया था। द्रुक पंचांग के अनुसार, देवी का संबंध सर्वगुण संपन्न भगवान मंगल से है, जो उनके स्वामी हैं। नवरात्रि के दौरान उनकी पूजा करने से मन को शांति मिलती है, भक्तों में संयम और दृढ़ता का संचार होता है। यह आत्म-संयम, पवित्रता और अटूट भक्ति के महत्व पर प्रकाश डालता है। उनका आशीर्वाद भक्तों को दिव्य ज्ञान और आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर अग्रसर करता है, जिससे उन्हें जीवन की चुनौतियों का धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ सामना करने में मदद मिलती है।
नवरात्रि के दूसरे दिन के शुभ मुहूर्त
द्रुक पंचांग के अनुसार, नवरात्रि के दूसरे दिन के सभी शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं।
नवरात्रि का दूसरा दिन रंगारंग
नवरात्रि के दूसरे दिन का शुभ रंग लाल है। नवरात्रि के अनुष्ठानों और उत्सवों के दौरान लाल रंग पहनना उपयुक्त होता है क्योंकि यह जोश और प्रेम का प्रतीक है। देवी को चढ़ाई जाने वाली चूड़ी का लाल रंग भी प्रिय है और यह पहनने वाले को शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करता है, जिससे देवी का आशीर्वाद, दीर्घायु और संपूर्ण जीवन प्राप्त होता है।
नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा विधि:
हरिश्याम कला के अनुसार माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए निम्नलिखित दिशानिर्देश हैं:
तैयारी: पूजा के लिए एक शुभ मुहूर्त चुनें और पूजा स्थल को एक साफ कपड़े से अच्छी तरह साफ़ करें। सभी सामग्री एकत्र करें।
कलश स्थापना: पवित्र कलश को वेदी पर रखें, उसमें जल, सुपारी और पान डालें। कलश पर एक नारियल रखें, उसे आम के पत्तों से ढक दें और शुद्धिकरण के लिए गंगाजल छिड़कें।
मूर्ति या चित्र: वेदी पर ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें और उसे फूलों और लाल चुनरी से सजाएँ।
पूजा सामग्री: मूर्ति या चित्र के माथे पर केसर का तिलक लगाएँ। चावल के दानों पर रोली और कुमकुम के साथ सफेद फूल या कमल के फूल चढ़ाएँ। घी का दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाकर देवी को अर्पित करें, इसके बाद दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण, जिसे पंचामृत कहते हैं, लगाएँ।
मंत्र जाप: देवी को समर्पित मंत्र - "ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः" - का 108 बार जाप करें।
आरती और प्रार्थना: कपूर से आरती करें, उसके बाद देवी को समर्पित भक्ति गीत, भजन और प्रार्थनाएँ करें।
प्रसाद वितरण: देवी को प्रसाद (मिठाई या फल) चढ़ाएँ और इसे परिवार के सदस्यों और भक्तों में वितरित करें।
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