नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली की एक महिला न्यायाधीश के साथ अपमानजनक व्यवहार के दोषी अधिवक्ता (convicted advocate) की सजा कम करने से मंगलवार को इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता को आत्मसमर्पण करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया।
अधिवक्ता ने अक्टूबर 2015 में राष्ट्रीय राजधानी में एक महिला न्यायाधीश के साथ दुर्व्यवहार के मामले (Cases of misbehavior) में 18 महीने की जेल की सजा को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति पी के मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की अंशकालीन कार्य दिवस पीठ ने सख्त टिप्पणियों के साथ याचिकाकर्ता अधिवक्ता संजय राठौर की सजा कम करने की गुहार ठुकरा दी।
पीठ की ओर से न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि यदि इस तरह (अधिवक्ता के) के व्यवहार के खिलाफ सख्त रुख नहीं अपनाया गया तो महिला न्यायिक अधिकारियों को सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित नहीं किया जा सकेगा।
अधिवक्ता राठौर ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 26 मई उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें निचली अदालत के दोषी करार देने को उचित ठहराया गया था। उच्च न्यायालय ने हालांकि निचली अदालत द्वारा निर्धारित सजा के आदेश को इस सीमा तक संशोधित किया कि दोषी अधिवक्ता को दी गई सभी सजाएं एक साथ चलेंगी, न कि क्रमिक रूप से।
वकील राठौर को निचली अदालत ने दोषी ठहराया और भारतीय दंड संहिता की धारा 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना) के तहत 18 महीने के साधारण कारावास, धारा 189 (लोक सेवक को धमकाने) और धारा 353 (लोक सेवक को ड्यूटी से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत तीन-तीन महीने की सजा सुनाई थी।
यह मामला ट्रैफिक चालान के मामले में सुनवाई के दौरान सामने आया था, इसके बाद पीठासीन न्यायिक अधिकारी (metropolitan magistrate) ने संबंधित अधिवक्ता के खिलाफ औपचारिक तौर पर शिकायत की थी।
पुलिस को दी गई शिकायत में न्यायिक अधिकारी की ओर से आरोप लगाया गया कि अधिवक्ता ने “एक महिला न्यायिक अधिकारी होने के नाते उनका अपमान किया और उनकी तथा न्यायालय की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई।”
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