सहारनपुर। काष्ठ उत्पादों के निर्माण के लिये विख्यात सहारनपुर के निर्यातकों का मानना है कि पुरातन काष्ठ कला के मनमोहक उत्पादों के निर्माण और निर्यात के मामलों में भारत चीन को पछाड़ने की कुव्वत रखता है। जिले के एक निर्यातक असलम सैफी ने यूनीवार्ता से बातचीत में यह दावा करते हुये कहा कि चीन दो वजह से काष्ठ उत्पादों के निर्यात में दुनिया में अपना रुतबा रखता है। पहला यह कि उसके उत्पाद सस्ते होते हैं क्योंकि उन पर लागत कम आती है। दूसरा वहां श्रम सस्ता है और करों और लालफीताशाही का शिकंजा नहीं है। ऐसे में विश्व बाजार में चीन को चुनौती देना बेहद मुश्किल हो रहा है। यदि भारत इन दो बातों पर गौर करे तो न सिर्फ चीन के एकाधिकार को चुनौती दी जा सकती है बल्कि विश्व पटल पर देश अलग मुकाम हासिल कर सकता है।
मो असलम के पुरखे मोहम्मद गुलाम अली (Mohammed Ghulam Ali) ने 17 वीं शताब्दी में सहारनपुर में काष्ठ कला की बुनियाद रखी थी जो तब कश्मीर में अपनी जड़ें जमा चुकी थी। ताजमहल की सफेद सगंमरमर पर उकेरी जादुई नक्काशी ने कश्मीरियों को अखरोट की मुलायम लकड़ी पर उसी नक्काशी को अपनाने के लिए प्रेरित किया। असलम सैफी अपने परिवार की छठी पीढ़ी में इस कला का विश्व भर बाजारों में भारत की मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
वह सहारनपुर के नहर के किनारे के पिछड़े गाँव धतौली रांघड़ (Dhatoli Ranghar) में फलों के वृक्षों से आच्छादित 31 बीघा में फैले कारखाने में बेजान लकड़ी पर अपने हुनर से जान फूंकते दिखते हैं। एमबीए डिग्री प्राप्त उनके दोनो बेटे अरशद और अज़हर भी हजारों कुशल कारीगरो के साथ काम में हाथ बंटाते हैं।
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