शिमला। हिमाचल प्रदेश के मौसम में भारी बदलाव (huge change) देखने को मिल रहा है, जहां सर्दी और गर्मी दोनों मौसम असामान्य हो रहे हैं। इस वर्ष सर्दी असामान्य रूप से गर्म रही, जिसके कारण हिमपात (snowfall) नहीं हुआ, जबकि गर्मियों में अप्रत्याशित शीत लहरें, ओलावृष्टि (hailstorms) और यहां तक कि ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी देखी गई जो मौसमी कैलेंडर को पूरी तरह से अलग है। मौसम की अनिश्चितता अब पहाड़ी राज्य में कृषि एवं बागवानी के लिए एक पूर्ण संकट उत्पन्न कर रही है।
सर्दियों में हिमपात नहीं होने के कारण, सेब के बागों के लिए आवश्यक शीतलता नहीं मिल सकी और स्थिति खराब हो गई, फूल कमजोर हो गए। वसंत ऋतु में देर से बर्फबारी, पाला और शीत लहरें आईं, जिससे पराग कण बह गए और पुष्प कलियां जम गईं, जिससे सेब और नाशपाती जैसे फलों पर गंभीर असर पड़ा। कुछ क्षेत्रों में भारी फल देने वाले पेड़ गड़गड़ाहट, तूफान के कारण उखड़ गए या ओलों के कारण जमा बर्फ के भार से गिर गए।
मशोबरा बागवानी केंद्र के पूर्व निदेशक डॉ. एस.पी. भारद्वाज ने कहा कि लंबे समय तक सूखे के कारण स्थिति और खराब हो गई है, जिससे किसानों को नए पौधों की सिंचाई उस समय करनी पड़ रही है, जब प्राकृतिक रूप से नमी वाला मौसम होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि अपरिपक्व फलों का जल्दी गिरना एक सामान्य बात हो गई है। फफूंद संक्रमण, कीट हमलों और डाईबैक रोग में वृद्धि जलवायु तनाव के दीर्घकालिक प्रभावों को दर्शाती है। खराब उपज और असामान्य फल के आकार के साथ, पारंपरिक सेब की बेल्ट धीरे-धीरे उच्च ऊंचाई की ओर बढ़ रही है।
वनों में कमी, देवदार की पत्तियों की बढ़ती परतें और बार-बार होने वाली आगजनी ने मुसीबतों को और बढ़ा दिया है। इन आगों ने न केवल वन क्षेत्र और बागों को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि इनसे घरों में भी आग लगी है, जिससे कई परिवार विस्थापित हुए हैं। बेमौसम बारिश और बर्फबारी के कारण भूस्खलन ने खेतों और खड़ी फसलों को नष्ट कर दिया है, जिससे किसानों को अपने बागों को अधिक स्थिर क्षेत्रों में स्थानांतरित करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
भारद्वाज ने कहा कि परंपरागत खरीफ और रबी फसल पैटर्न भी दबाव में हैं। अनियमित वर्षा और तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण रबी की देर से बुवाई और खरीफ की जल्दी बुवाई से पैदावार पर असर पड़ने का अनुमान है। उन्होंने खाद्यान्न और राज्य कृषि अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव के प्रति आगाह किया।
भारतीय मौसम विभाग ने आगामी मानसून में 109 प्रतिशत वर्षा का अनुमान लगाया है, जिससे बाढ़ और सब्जी की फसलों के लिए अधिक संतृप्ति की आशंका बढ़ गई है, जिससे बाजार और कीमतें अस्थिर हो सकती हैं।
विशेषज्ञों को आशंका है कि लगातार चरम मौसम की घटनाओं के कारण दीर्घकालिक खाद्य असुरक्षा, मुद्रास्फीति और कृषि से बड़े पैमाने पर पलायन हो सकता है। राज्य को तत्काल हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है, जिसमें फसल बीमा, जलवायु-प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देना, जल संचयन, मृदा संरक्षण और दीर्घकालिक योजना आदि शामिल हैं। प्राधिकारियों को छोटे एवं मध्यम सेब उत्पादकों को प्राथमिकता देनी चाहिए तथा उन्हें बदलती जलवायु के अनुकूल बनने और अपनी आजीविका को बनाए रखने में मदद करने के लिए वैज्ञानिक समर्थन एवं वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए।
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Tue, May 06 , 2025, 12:43 PM