Mahashivratri 2025: इस महाशिवरात्रि करना चाहते हैं भोलेनाथ को प्रसन्न? तो पढ़ें इस पौराणिक कथा को, दुख-दर्द दूर करेंगे पशुपतिनाथ 

Mon, Feb 24 , 2025, 02:32 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

Mahashivratri Vrat Katha: महाशिवरात्रि भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र त्योहार (holy festival) है, जिसका हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. यह त्यौहार माघ माह के कृष्ण पक्ष (Chaturdashi date of Krishna Paksha) की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, शिव मंदिरों में जाते हैं और पूरी रात जागरण करते हैं. महाशिवरात्रि का अर्थ है 'शिव की रात (Night of Shiva)', और इसे भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और सम्मान व्यक्त करने का एक विशेष अवसर माना जाता है.

महाशिवरात्रि के विशेष मुहूर्त पर करें पूजा!
इस वर्ष महाशिवरात्रि 2025 (Mahashivratri 2025) 26 फरवरी को मनाई जा रही है. पंचांग के अनुसार चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी 2025 को सुबह 11:08 बजे शुरू होगी और 27 फरवरी को सुबह 8:54 बजे समाप्त होगी. इस विशेष दिन पर भगवान शिव की पूजा, रुद्राभिषेक और व्रत का विशेष महत्व है. महाशिवरात्रि पर रात्रि के चार प्रहरों में पूजा की जाती है, प्रत्येक प्रहर की एक विशेष पूजा विधि होती है. मान्यता है कि महाशिवरात्रि की पूजा करने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है और जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है. शिव भक्त महाशिवरात्रि का पर्व हर्ष, भक्ति और विश्वास के साथ मनाते हैं. इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की विशेष पूजा की जाती है. महाशिवरात्रि पर रात्रि पाली का भी महत्व है. आमतौर पर हर तीज-त्यौहार के दौरान पूजा ब्रह्म मुहूर्त या सुबह-सुबह की जाती है, जबकि महाशिवरात्रि पर चारों प्रहर की पूजा की जाती है.

 इस महाशिवरात्रि व्रत कथा को पढ़कर प्राप्त करें भोलेनाथ का आशीर्वाद!
पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था. जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था. वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका. क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी. शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा. चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी. शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की. शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया. अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला. लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था. शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया. जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी. वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा.

बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था. शिकारी को उसका पता न चला. पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनिया तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई. इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए. एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुची. शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूं. शीघ्र ही प्रसव करूंगी. तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है. मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊगी, तब मार लेना.

‘शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई. प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए. इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया. कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली. शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया. तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूँ. कामातुर विरहिणी हूं. अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं. मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊगी.’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया. दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका. वह चिंता में पड़ गया.

रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था. इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई. तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली. शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था. उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई. वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली, ‘हे शिकारी!’ मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊगी. इस समय मुझे मत मारो. शिकारी हसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दू, मैं ऐसा मूर्ख नहीं. इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं.

मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे. उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी. हे शिकारी! मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं.

हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई. उसने उस मृगी को भी जाने दिया. शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था. पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया. शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा. शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े. मैं उन हिरणियों का पति हूं. यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो. मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊगा.

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी. तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्निया जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएगी. अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो. मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं.’

अनजाने में हुई शिवरात्रि की पूजा
शिकारी ने उसे भी जाने दिया. इस प्रकार प्रात: हो आई. उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई. पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला. शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया. उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया. थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके., किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई. उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया.

पूजा से मिला मोक्ष
अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई. जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए. शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए.

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