Vladimir Putin : 300 मौतों का बदला लेने के लिए 80 हजार को मार डाला, देश के साथ कोई गद्दारी नहीं, पुतिन कैसे बन गए तानाशाह?

Wed, May 08, 2024, 11:42

Source : Hamara Mahanagar Desk

रूस. व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने पांचवीं बार रूस के राष्ट्रपति पद की शपथ ली है. पुतिन ने दुनिया को संदेश दिया है कि वह रूस के शक्तिशाली नेता (powerful leader of Russia) हैं और आने वाले वर्षों तक रूस के नेता रहेंगे. 1992 से 2024 तक पुतिन ने अपनी छवि एक फौलादी, सख्त नेता (steely, tough leader) के रूप में बनाई. आज वह यूरोप और अमेरिका (Europe and America) को टक्कर देने की ताकत वाला विश्व नेता है. पुतिन के इतिहास को देखते हुए, वह एक जासूस थे. केजीबी में रहते हुए उन्होंने कई ऑपरेशन्स को अंजाम दिया है. 1991 में सोवियत संघ (Soviet Union) का विघटन हो गया. तब कई केजीबी एजेंटों ने पश्चिम में शरण ली. कुछ ने डबल एजेंट की भूमिका निभाई. लेकिन पुतिन ने देश के साथ गद्दारी नहीं की. उनकी यही खासियत उन्हें राजनीति में ले आई.

व्लादिमीर पुतिन का जन्म 1952 में एक साधारण परिवार में हुआ था. उनके पिता सोवियत संघ की नौसेना में कार्यरत थे. उनकी मां एक छोटी फैक्ट्री में काम करती थीं. 1975 में वह रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी (Russian intelligence agency KGB) में शामिल हो गये. कदम दर कदम वह एजेंट से गुप्त अधिकारी बन गया. 1989 में जर्मनी रूस के ख़िलाफ़ हो गया, जो रूस के लिए सबसे बड़ा बदलाव था. जर्मनी पहले रूस से प्रभावित था. बर्लिन की दीवार (Berlin Wall) गिरने के बाद जर्मनी पूरी तरह से अमेरिका के साथ हो गया. रूस को तब सोवियत संघ के नाम से जाना जाता था. इस संघ में कुल 15 देश थे. संघ के विघटन के बाद ये सभी देश अलग हो गये. उस समय, यूएसएसआर में एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, यूक्रेन, मोल्दोवा, बेलारूस, जॉर्जिया, आर्मेनिया, अजरबैजान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल थे. सबसे बड़ा देश रूस था.

... फिर एंट्री हुई व्लादिमीर पुतिन की
जब सोवियत संघ टूटा तो मिखाइल गोर्बाचेव रूस के राष्ट्रपति थे. वह रूस के सबसे असफल राष्ट्रपति बने. उन्होंने 1989 में तालिबान को नियंत्रित करने के लिए अफगानिस्तान में सेना भेजी. लेकिन हुआ ऐन उलटा. रूसी सेना को वहां से भागना पड़ा. बर्लिन की दीवार गिरी, गोर्बाचेव भी इसे रोक नहीं सके. 1991 में यूएसएसआर टूट गया. अंततः मिखाइल गोर्बाचेव को अपना पद छोड़ना पड़ा. उनकी जगह बोरिस येल्तसिन रूस के राष्ट्रपति बने. बोरिस येल्तसिन को लगा होगा कि रूस में सरकारी मशीनरी बेकार है. इससे स्लाइड पर काफी दबाव पड़ता है. अगर हमें अमेरिका की तरह प्रगति करनी है तो निजीकरण जरूरी है, बोरिस की राय थी. बोरिस येल्तसिन ने सरकारी मशीनरी को बंद करके निजीकरण की शुरुआत की. लेकिन इसका उल्टा असर हुआ. अर्थव्यवस्था और ढह गई. लोगों की नौकरियाँ चली गईं. येल्तसिन का विरोध शुरू हो गया. फिर एंट्री हुई व्लादिमीर पुतिन की.

पुतिन ने जनता को कैसे प्रभावित किया?
1991 में व्लादिमीर पुतिन सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल बने. अनातोली सोबचाक रूस के सबसे बड़े शहर सेंट पीटर्सबर्ग के मेयर थे. पुतिन ने सोबचाक से मुलाकात की. उन्होंने पुतिन को सेंट पीटर्सबर्ग शहर का डिप्टी मेयर बनाया. डिप्टी मेयर का पद संभालते ही पुतिन ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगा दी. व्यवस्था में सुधार हुआ है. सड़क पर एक बदलाव देखने को मिला. यहीं से रूस में व्लादिमीर पुतिन के नाम की चर्चा शुरू हो गई. वे तेजी से आये. उस समय वैलेन्टिन बोरिसोविच युमाशेव रूसी राष्ट्रपति के सलाहकार थे. वह बोरिस के दामाद थे. उन्होंने पुतिन को फोन किया. पुतिन राष्ट्रपति बोरिस के सलाहकार बन गए. इसके बाद पुतिन और बोरिस गहरे दोस्त बन गए. धीरे-धीरे रूसी राजनीति में पुतिन का प्रभाव बढ़ता गया. राष्ट्रीय राजनीति में उनकी छवि उभरी.

मुठभेड़ का सीधा प्रसारण किया गया
15 देश यूएसएसआर से अलग हो गए थे. 1999 में पुतिन के प्रधानमंत्री बनने के बाद चेचन्या भी रूस से अलग होना चाहता था. इसी बीच अगस्त और सितंबर के बीच रूस के शहर मॉस्को में सिलसिलेवार बम धमाके हुए. लगभग 300 नागरिक मारे गये. चेचन्या को लेकर रूसी लोगों में गुस्सा था. बोरिस येल्तसिन को शराब की लत थी. मामला पुतिन को सौंपा गया. पुतिन ने चेचन्या के खिलाफ सेना तैनात की. प्रत्येक सैनिक के सिर पर हेलमेट पर एक कैमरा लगा होता है। लाइव एक्शन का सीधा प्रसारण दिखाया गया. पुतिन ने 300 नागरिकों की मौत का बदला लेने के लिए 80 हजार लोगों को मार डाला. पुतिन की इस धमकी और निर्भीकता को देखकर रूसी राजनीति में उनकी लोकप्रियता और भी बढ़ गई. पुतिन 1999 में प्रधानमंत्री थे. वह राष्ट्रपति से भी अधिक प्रसिद्ध हो गये। बोरिस पर भ्रष्टाचार के आरोप बढ़ते जा रहे थे. उस समय पुतिन ने 2000 में पहली बार राष्ट्रपति चुनाव जीता था. इसके बाद पुतिन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी सत्ता को कोई चुनौती न मिले. पुतिन ने संविधान पर शोध किया है और वह 2036 तक रूस के राष्ट्रपति बने रहेंगे.

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