मुंबई। अपनी विभिन्न मांगों को लेकर राज्य की गटप्रवर्तक व आशा स्वयंसेविका अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (international women's day) पर आजाद मैदान में धरना प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है। इनकी मांगों में इन्हें सरकारी सेवा में शामिल करने, इनका न्यूनतम वेतन निर्धारित करने एवं सामाजिक सुरक्षा लाभ सहित अन्य मुद्दे है. महाराष्ट्र में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में 70 हजार आशा वर्कर और 4 हजार गटप्रवर्तक कार्यरत हैं। इनका कहना है कि काम के आधार पर इन्हें जो पारिश्रमिक मिलता है वह बहुत कम है। इससे उनकी रोजी-रोटी नहीं चलती है और श्रम कानूनों के तहत उन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मिलता है। गटप्रवर्तक और आशा वर्करों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 47 के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियुक्त किया जाता है और इनका काम भी स्थायी है। इसलिए इनका कहना है कि इन्हें स्वयंसेवक के रूप में न समझा जाए। कुछ आशा वर्करों का कहना है कि उन्होंने कोरोना काल में जान जोखिम में डालकर वालंटियर के रूप में काम किया था और कोरोना काल में उनके कार्यों की वजह से उन्हें एक योद्धा के रूप में सम्मानित भी किया गया था, इसलिए उनकी मांगे मानी जाए. यूनिसेफ की तरफ से आशा वर्करों (ASHA workers) और गटप्रवर्तको के काम को भी सराहा गया है। बावजूद इसके, सरकार ने अभी भी इन्हें कई सुविधाओं से वंचित रखा है।
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Tue, Mar 07 , 2023, 09:06 AM