नयी दिल्ली। वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग (DFC) ने उच्चतम न्यायालय के मध्यस्थ एवं सुलह परियोजना समिति ( MCMP) के साथ मिलकर ऋण वसूली न्यायाधिकरणों के पीठासीन अधिकारियों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों के लिए राजधानी में मध्यस्थता विषय पर पांच दिन प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया।
वित्त मंत्रालय की की ओर से रविवार को जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार 24-28 सितंबर तक 40 घंटे के इस कार्यक्रम के दौरान मध्यस्थता की अवधारणा, न्यायिक प्रक्रिया और विभिन्न एडीआर प्रक्रियाओं के बीच तुलना, मध्यस्थता में बातचीत और सौदेबाजी आदि विषयों पर चर्चा की गयी। न्यायालय के एनेक्सी भवन परिसर में आयोजित यह कार्यक्रम वर्तमान समय में विवाद समाधान तंत्र के महत्व को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से प्रशिक्षण के उद्देश्य से रखा गया था। मध्यस्थता को आपसी सहमति से विवादों को सुलझाने के लिए एक प्रभावी पद्धति के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
विज्ञप्ति में बताया गया है कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान मध्यस्थता की अवधारणा, न्यायिक प्रक्रिया और विभिन्न एडीआर प्रक्रियाओं के बीच तुलना, प्रक्रिया, मध्यस्थों के चरण और भूमिका, मध्यस्थता में संचार के तरीके, साथ ही मध्यस्थता में बातचीत और सौदेबाजी सहित विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में मध्यस्थता में विभिन्न हितधारकों, जैसे रेफरल न्यायाधीशों, वकीलों और पक्षों की भूमिका पर भी चर्चा की गई, जिसमें ऋण वसूली और दिवालियापन (RDB) अधिनियम, 1993 और एसएआरएफएईएसआई अधिनियम, 2002 के तहत डीआरटी के पीठासीन अधिकारियों द्वारा विचारित और विचारित मामलों पर विशेष ध्यान दिया गया। प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण में शामिल किए गए विषयों पर संतुष्टि व्यक्त की और वित्तीय सेवा विभाग (Department of Financial Services) तथा न्यायालय की एमसीएमपी के प्रति सराहना व्यक्त की।
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