Navratri Sixth Day Puja: नवरात्रि में नौ दिवसीय दुर्गा पूजा (Durga Puja 2025) के दौरान पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांड़ा और पांचवें दिन स्कंदमाता की साधना-उपासना करने के बाद छठवें दिन कात्यायनी (Katyayani) की स्तुति और पूजन होती हैं। शारदीय नवरात्रि के छठे दिन देवी पार्वती के शक्तिशाली रूप माँ कात्यायनी (Sharad Navratri, Maa Katyayani) की पूजा की जाती है। वह चार हाथों वाली देवी हैं। उन्हें एक योद्धा देवी के रूप में पूजा जाता है और उन्हें एक शेरनी पर सवार (riding a lioness) दिखाया गया है। शारदीय नवरात्रि के छठवें दिन कात्यायनी माता की पूजा पूरे विधि और विधान के साथ करनी चाहिए। वह अपने दाहिने हाथ से अभय और वरद मुद्रा दिखाती हैं, और बाएं हाथ में कमल का फूल और तलवार (lotus flower and a sword) रखती हैं। पुराणों के अनुसार इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। माता कात्यायनी की पूजा करने से सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है। इसके साथ ही शत्रुओं का भय समाप्त हो जाता है।
मां कात्यायनी की पूजा विधि (Maa Katyayani Pooja Vidhi)
कात्यायनी माता को पीला रंग प्रिय है। देवी मां पूजा के लिए सुबह उठकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र पहन लें। इसके बाद आसन पर बैठ जाएं। उसके बाद चौकी पर मां कात्यायनी की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें ,फिर मां की प्रतिमा या चित्र को गंगा जल शुद्धिकरण करें। जल भरकर कलश चौकी पर रखें ,उसी चौकी पर भगवान श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका यानी सात सिंदूर की बिंदी लगाते हुए उनकी स्थापना भी कर लें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें। फिर मंत्रों द्वारा षोडशोपचार पूजा करें। मां को अक्षत, लाल चंदन, चुनरी और लाल पीले फूल चढ़ाएं, इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। साथ ही दुर्गा चालीसा भी पढ़ें. उसके बाद मां का पसंदीदा भोग लगाएं। उन्हें पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें. मां के मंत्रों का जाप करें और आरती करें। माता को सुगंधित पीले फूल अर्पित करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं साथ ही प्रेम संबंधी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं।
नवरात्रि का छठा दिन मंत्र और रंग
उनकी पूजा का मंत्र है “ॐ देवी कात्यायन्यै नमः।” नवरात्रि के छठे दिन का रंग ‘ग्रे’ है।
शुभ मुहूर्त (पूजा का समय)
शुक्ल षष्ठी तिथि - दोपहर 12:03 बजे (27 सितंबर) से दोपहर 2:27 बजे (28 सितंबर), अनुराधा नक्षत्र, सुबह 1:08 बजे (28 सितंबर), ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 4:36 बजे सुबह 5:24 बजे, अभिजित मुहूर्त -दोपहर 11:48 बजे, दोपहर 12:36 बजे, विजय मुहूर्त - दोपहर 2:12 बजे-दोपहर 3:00 बजे, अमृत काल-दोपहर 1:26 बजे-दोपहर 3:14 बजे।
मां कात्यायनी का भोग (Maa Katyayani Bhog)
ऐसी मान्यता है कि देवी मां कात्यायनी शहद बेहद प्रिय है. ऐसे में शहद या मधु से बनी चीजों का भोग लगाया जा सकता है. इसे साथ ही मां को पीले रंग का भोग भी पसंद है. अगर इसका का भोग नहीं सकते हैं तो खीर-पूड़ी या हलवा पूड़ी का भोग तैयार कर सकते हैं.
मां कात्यायनी की कथा (Katyayani Mata Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार महार्षि कात्यायन ने आदिशक्ति माता की कठिन तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें ऐसा वरदान दिया था कि देवी शक्ति उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लेंगी। उसके बाद मां का जन्म महार्षि कात्यान के आश्राम में हुआ था। मां का लालन-पालन कात्यायन ऋषि ने ही किया था। पुराणों के अनुसार जिस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था। उस समय त्रिदेवों के तेज से मां की उत्पत्ति हुई थी। देवी ने ऋषि कात्यायन के यहां अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था। इसके बाद ऋषि कात्यायन ने उनका तीन दिनों तक पूजन किया था।
एक मान्यता यह भी है कि ब्रज की गोपियों ने करुणावतार भगवान श्रीकृष्ण को अपने पति के रूप में पाने के लिए, कालिंदी यमुना के किनारे, देवी कात्यायनी की ही आराधना की थी। इसी कारण आज भी देवी कात्यायनी समस्त ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
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Sat, Sep 27 , 2025, 02:39 PM