नयी दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जातिगत जनगणना का निर्णय लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi)की देश की प्रगति, वंचितों के अधिकार और सामाजिक न्याय को लेकर प्रतिबद्धता का प्रमाण बताया और कांग्रेस पर सामाजिक न्याय के लिए स्वांग रचने का आरोप लगाया। केन्द्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता धर्मेंद्र प्रधान (Dharmendra Pradhan) ने आज केन्द्रीय कार्यालय में प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए जातिगत जनगणना का निर्णय लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति आभार एवं धन्यवाद व्यक्त किया। उन्होंने इस निर्णय को देश की प्रगति, वंचितों के अधिकार और सामाजिक न्याय की दिशा में मोदी सरकार की प्रतिबद्धता का प्रमाण बताया।
प्रधान ने खोखले नारेबाजी और अहंकारी बयान देने के लिए कांग्रेस की कड़ी आलोचना करते हुए राहुल गांधी को सामाजिक न्याय का विरोधी बताया और कहा कि कांग्रेस सिर्फ सत्ता के लिए सामाजिक न्याय का स्वांग रचती है। केंद्रीय मंत्री श्री प्रधान ने कहा कि कल एक बार फिर देश की जनता ने सच्ची नीयत और खोखले नारों के बीच के फर्क को स्पष्ट रूप से देख लिया। प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में जातिगत जनगणना का निर्णय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (National Democratic Alliance) सरकार की सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह फैसला अचानक नहीं लिया गया है, बल्कि पिछले 11 वर्षों से प्रधानमंत्री के नेतृत्व में समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की नीति का यह तार्किक और सैद्धांतिक विस्तार है। मोदी सरकार का मूल मंत्र रहा है - ''सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास।'' हमारी सभी योजनाओं और कार्यक्रमों का लक्ष्य सामाजिक न्याय रहा है, ताकि समाज के सभी वर्गों को वैज्ञानिक और पारदर्शी तरीके से लाभ पहुंच सके।
प्रधान ने कहा कि भाजपा सरकार ने पहली बार देश में ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया। बड़ी संख्या में वंचित वर्गों को सरकार में प्रतिनिधित्व मिला, चाहे वह केंद्र सरकार हो, भाजपा शासित राज्य सरकारें हों या फिर मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री या विधायक। यह सब सामाजिक न्याय की प्रतिबद्धता का प्रत्यक्ष प्रमाण है, जिसकी अगुवाई स्वयं प्रधानमंत्री श्री मोदी कर रहे हैं। आजादी के बाद से अब तक की जनगणनाओं में जातिगत आंकड़े नहीं जुटाए गए थे। वर्ष 2021 में जनगणना प्रस्तावित थी जो कोविड महामारी के कारण स्थगित हो गई। अब सरकार ने सिद्धांत रूप में यह निर्णय लिया है कि आगामी जनगणना में जातियों की गणना भी की जाएगी। कल बुधवार को राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति में जातिगत जनगणना का निर्णय लिया गया, जिसकी जानकारी लगभग एक वर्ष पूर्व देश के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) द्वारा भी दी गई थी। यह फैसला वंचित वर्गों को उनका हक और अधिकार सुनिश्चित कराने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
उन्होंने कहा कि पिछले 11 वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए अनुभवों और आंकड़ों के आधार पर अब योजनाएं और भी सटीक, समावेशी और न्यायोचित बनाई जाएंगी। इस निर्णय का पूरे देश में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर स्वागत किया गया है। समाज के सभी वर्गों ने इस निर्णय को सराहा है। यह प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में सामाजिक न्याय और सुशासन की दिशा में आगे बढ़ते भारत की मजबूत नींव का प्रतीक है। केंद्रीय मंत्री श्री प्रधान ने प्रधानमंत्री श्री मोदी का आभार प्रकट करते हुए कहा, उन्होंने जो ऐतिहासिक निर्णय लिया है, वह सामाजिक न्याय की दिशा में एक मील का पत्थर है। जब यह निर्णय लिया गया, तो कुछ लोगों की बौखलाहट स्पष्ट रूप से दिखाई दी। लेकिन जब यह चर्चा शुरू हो ही गई है, तो देश को पूरी सच्चाई जान लेनी चाहिए। 1931 में भारत में आखिरी बार जातिगत जनगणना हुई थी। 1941 में देश स्वतंत्र नहीं हुआ था, इसलिए उस समय की ब्रिटिश हुकूमत ने इसे नहीं कराया।
लेकिन जब 1951 में स्वतंत्र भारत में पहली जनगणना होनी थी, तब सरकार और सिस्टम किसके हाथ में था , स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू उस समय देश के पहले प्रधानमंत्री थे और यह सर्वविदित है कि अगर बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी न होते, तो सामाजिक संवेदना और समावेशिता संविधान का हिस्सा नहीं बनती। लेकिन दुर्भाग्यवश, पंडित नेहरू जातिगत आरक्षण के कट्टर विरोधी थे। उनका विरोध केवल मौखिक नहीं था, उन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर यह कहा कि जाति आधारित आरक्षण से ''गुणवत्ता'' में कमी आएगी। यह सोच स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि सामाजिक न्याय के प्रति तत्कालीन कांग्रेस सरकार की मानसिकता क्या थी।
श्री प्रधान ने याद दिलाया कि कांग्रेस ने काका कालेलकर कमेटी की रिपोर्ट को जानबूझकर लंबे समय तक दबा कर रखा। यह रिपोर्ट सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति पर आधारित थी, लेकिन कांग्रेस ने उसे सार्वजनिक नहीं किया। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी, जिसमें तत्कालीन जनसंघ (जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बना) भी सहभागी था, तब मंडल कमीशन का गठन हुआ। तब भी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी सामाजिक न्याय के पक्ष में खड़े थे।
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Thu, May 01 , 2025, 06:20 PM