ओटावा। कनाडा के संघीय चुनावों (Federal elections) में निर्णायक परिणाम सामने आए हैं, जिसमें खालिस्तान समर्थक नेता और कनाडा के पूर्व रक्षा मंत्री जगमीत सिंह(Jagmeet Singh) की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी को ओटावा की राजनीति(politics) में बड़ी गिरावट का सामना करना पड़ा है। यह नतीजा भारत-कनाडा संबंधों के लिए सकारात्मक हो सकता है, जो हाल के वर्षों में खालिस्तानी तत्वों को बढ़ावा देने के कारण बिगड़ गए थे। खालिस्तान समर्थक नेता जगमीत सिंह की पार्टी की ताकत संसद में काफी घट गई, जबकि मार्क कार्नी की लिबरल पार्टी ने 168 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया और कनाडा में नए सेंट्रिस्ट शासन की शुरुआत की।
जगमीत ने कनाडा में वर्तमान संघीय चुनावों के दौरान ब्रिटिश कोलंबिया की बर्नाबी सेंट्रल सीट हारने के बाद एनडीपी पार्टी के नेता पद से इस्तीफा दे दिया है। पूर्व रक्षा मंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के करीबी सहयोगी रहे जगमीत को भारत विरोधी रुख और खालिस्तानी अलगाववादियों के समर्थन के लिए जाना जाता है। बर्नाबी सेंट्रल सीट पर एनडीपी को करारी हार मिली, जहां उसे केवल 27.3 प्रतिशत वोट मिले, जबकि लिबरल उम्मीदवार वेड चांग ने 40 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए। ट्रूडो सरकार के साथ गठबंधन में रही एनडीपी के कार्यकाल के दौरान कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियों में तेजी आई, जिनमें बड़े प्रदर्शन, रैलियां और भारत-कनाडा के राजनयिकों की निष्कासन जैसी घटनाएं शामिल रहीं।
जगमीत के प्रभाव वाले दौर में संसद में खालिस्तानी अपराधियों की गतिविधियां बढ़ीं, जिनमें तस्करी, ड्रग्स व्यापार, हत्या, डकैती और गिरोहों के बीच हिंसा शामिल थी। ये घटनाएं टोरंटो, ओंटारियो, वैंकूवर, मॉन्ट्रियल, कैलगरी जैसे बड़े शहरों में देखने को मिलीं। जगमीत की हार भारत-कनाडा संबंधों में सुधार की संभावनाओं को बढ़ा सकती है। नई सेंट्रिस्ट सरकार भारत के प्रति अधिक कूटनीतिक रुख अपना सकती है, कट्टर भारत विरोधी राजनीति को समर्थन देना बंद कर सकती है और व्यापार, शिक्षा व प्रवास जैसे क्षेत्रों में सहयोग को प्राथमिकता दे सकती है।
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