नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि कश्मीरी अलगाववादी यासीन मलिक को जम्मू की अदालत में शारीरिक रूप से पेश नहीं किया जाएगा। उसे तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गवाहों से जिरह करने की अनुमति दी जाएगी। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया।
सीबीआई ने याचिका दायर कर मलिक को शारीरिक रूप से पेश करने के जम्मू की एक निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। जम्मू की अदालत ने मलिक को 1989 में भारतीय वायुसेना के चार अधिकारियों की हत्या और रुबैया सईद के अपहरण से संबंधित मामलों में सुनवाई के दौरान गवाहों से जिरह के लिए (जम्मू की अदालत में) शारीरिक रूप से पेश करने का आदेश दिया था। सीबीआई का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मलिक जम्मू आने-जाने से गंभीर सुरक्षा चुनौतियों पर चिंताएं जताईं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि दिसंबर 2024 में केंद्र सरकार ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत एक आदेश जारी किया था, जिसमें मलिक की दिल्ली से एक साल तक आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके मद्देनजर, न्यायालय ने जम्मू में मलिक की शारीरिक पेशी की अनुमति देना अनुचित पाया। इसके अलावा, न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल और तिहाड़ जेल अधीक्षक की रिपोर्ट को स्वीकार किया, जिसमें पुष्टि की गई थी कि निचली अदालत और तिहाड़ जेल दोनों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (वीसी) की सुविधा है।
शीर्ष अदालत ने बताया कि बीएनएसएस की धारा 530 गवाहों की वर्चुअल जिरह की अनुमति देती है और उच्च न्यायालय के पास आपराधिक मुकदमों में वीसी के उपयोग की अनुमति देने वाले दिशानिर्देश हैं। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल मेहता ने मलिक को एक अत्यधिक जोखिम वाला व्यक्ति बताया, जिसके कथित तौर पर लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद से संबंध हैं और वह कई बार पाकिस्तान जा चुका है। सीबीआई ने मलिक को जम्मू ले जाने का विरोध करने के लिए एक गवाह की हत्या को भी मुख्य कारण बताया।
तिहाड़ जेल से वर्चुअली पेश हुए मलिक ने आतंकवादी होने से इनकार करते हुए कहा, “मैं आतंकवादी नहीं हूं, मैं एक राजनीतिक नेता हूं।” हालांकि, पीठ की ओर से न्यायमूर्ति ओका ने स्पष्ट किया कि अदालत उनके अपराध पर फैसला नहीं कर रही है, बल्कि केवल गवाह से जिरह के तरीके पर फैसला कर रही है। अदालत ने याद दिलाया कि जुलाई 2023 में, शीर्ष अदालत के न्यायाधीश तब हैरान रह गए थे, जब तिहाड़ जेल अधिकारियों ने अदालत के आदेश की गलत व्याख्या के कारण मलिक को पीठ के समक्ष शारीरिक रूप से पेश किया था। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने तब खुद को मामले से अलग कर लिया था।
शीर्ष अदालत ने पिछली सुरक्षा खामियों को स्वीकार करते हुए पहले जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय को मलिक के मुकदमे के लिए उचित वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएं सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। सॉलिसिटर जनरल मेहता ने यह भी बताया कि मलिक ने व्यक्तिगत रूप से पेश होने पर जोर देते हुए बार-बार वकील नियुक्त करने से इनकार कर दिया था, जिसे उन्होंने “चालबाजी” करने का प्रयास बताया। दिल्ली की एनआईए अदालत ने मई 2022 में मलिक को दोषी करार दिए जाने के बाद साजिश रचने, राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने और आतंकी फंडिंग के आरोपों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। एनआईए ने दिल्ली उच्च न्यायालय में उसके लिए मौत की सजा की मांग की है।
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Sat, Apr 05 , 2025, 07:37 AM