नयी दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (Draupadi Murmu) ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा (Yashwant Verma) को इलाहाबाद उच्च न्यायालय तबादला कर दिया है। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग की ओर शुक्रवार को एक अधिसूचना जारी करके न्यायमूर्ति वर्मा के स्थानांतरण से संबंधित घोषणा की गई।
अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रपति ने भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह के बाद न्यायमूर्ति वर्मा के तबादले का फैसला किया। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने 24 मार्च 2025 को न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी। शीर्ष अदालत की ओर से उस दिन जारी एक बयान में कहा गया था, " उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने 20 और 24 मार्च 2025 को आयोजित अपनी बैठकों में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय वापस भेजने की सिफारिश की है।"
न्यायमूर्ति वर्मा के निवास पर कथित तौर पर बेहिसाब नकदी बरामद होने के विवादों में घिरने के बाद उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जो आज (28 मार्च) खारिज कर दी गई। याचिका अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा, हेमाली सुरेश कुर्ने, राजेश विष्णु आद्रेकर और चार्टर्ड अकाउंटेंट मंशा निमेश मेहता ने संयुक्त रूप से दायर की थी। उन्होंने अपनी याचिका में न्यायमूर्ति वर्मा, केंद्रीय जांच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर और न्यायाधीशों की समिति के सदस्यों को मामले में पक्षकार बना था।
शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए 28 मार्च को याचिका खारिज की कि इस विवाद की जांच न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय समिति कर रही है। मुख्य न्यायाधीश ने समिति के गठन का 22 मार्च को आदेश दिया, जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी एस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश सुश्री अनु शिवरामन शामिल हैं। शीर्ष अदालत की ओर से जारी विज्ञप्ति (22 मार्च) के अनुसार, "फिलहाल दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को न्यायमूर्ति वर्मा को कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपने के लिए कहा गया है।"
याचिकाकर्ताओं ने न्यायमूर्ति वर्मा पर लगे आरोपों की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा पिछले दिनों गठित तीन न्यायाधीशों की समिति के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया था। साथ ही, शीर्ष न्यायालय से दिल्ली पुलिस को मुकदमा दर्ज करने और प्रभावी तथा सार्थक जांच करने का निर्देश देने की गुहार लगाई थी। न्यायमूर्ति वर्मा के नयी दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास पर 14 मार्च को रात करीब 11.30 बजे आग लगने की घटना हुई। उस समय वह घर पर नहीं थे। स्टोररूम में लगी इस आग को बुझाने के दौरान दमकल कर्मियों और पुलिस को एक कमरे में कथित तौर पर भारी संख्या में नोट मिले। यह मामला सामने आने के बाद उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने विचार विमर्श किया था। इसके बाद उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से न्यायमूर्ति वर्मा पर लगे आरोपों के मामले में रिपोर्ट मांगी थी। उनकी रिपोर्ट के आधार पर मुख्य न्यायाधीश ने समिति के गठन का आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति वर्मा ने दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के सवालों का जवाब देते हुए अपने निवास पर किसी भी प्रकार की अवैध नगदी होने से इनकार किया है। साथी, उन्होंने इसे फंसाने और बदनाम करने की साजिश करार दिया है। शीर्ष अदालत में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट और न्यायमूर्ति वर्मा के जवाब सहित जांच के दौरान उपलब्ध आग की घटना से संबंधित कथित वीडियो और तस्वीरें अपनी वेबसाइट पर साझा की हैं।
मूल रूप से उच्च न्यायालय इलाहाबाद से आने वाले न्यायमूर्ति वर्मा को अक्टूबर 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें 13 अक्टूबर 2014 को उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने एक फरवरी 2014 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। उन्हें 11 अक्टूबर 2021 को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।
दिल्ली उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध न्यायमूर्ति वर्मा के व्यक्तिगत विवरण के अनुसार, उनका जन्म छह जनवरी, 1969 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। उनके पिता इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी कॉम (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की। मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की। उसके बाद उन्हें आठ अगस्त, 1992 को एक वकील के रूप में नाम दर्ज किया गया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक अधिवक्ता के रूप में उन्होंने संवैधानिक, श्रम और औद्योगिक विधानों, कॉर्पोरेट कानूनों, कराधान और कानून की संबद्ध शाखाओं से संबंधित मामलों को संभालने से संबंधित क्षेत्रों में वकालत की। वह वर्ष 2006 से पदोन्नति तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विशेष अधिवक्ता थे। उन्होंने मुख्य स्थायी अधिवक्ता का पद भी संभाला। वर्ष 2013 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया।
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