नैनीताल। वैज्ञानिकों और साहित्यकारों ने अपनी अलग-अलग दुनिया बसाई हुई है जिनके बीच में एक खाई है जो लगातार बढ़ती जा रही है। उनमें कोई संवाद नहीं होता। वे एक-दूसरे के विषय में कुछ नहीं जानना चाहते। उक्त विचार प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ लेखक तथा विज्ञान कथाकार देवेंद्र मेवाड़ी (Devendra Mewari) ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय की रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) सृजन पीठ में कवयित्री महादेवी वर्मा के 118वें जन्मदिन के अवसर पर 'साहित्य और विज्ञान' विषयक महादेवी वर्मा स्मृति व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए।
मेवाड़ी ने कहा कि वैज्ञानिक न डिकंस के उपन्यास पढ़ते हैं, न शेक्सपियर के नाटक। जहाँ तक साहित्यकारों की बात है तो वे विज्ञान के मामूली नियमों तक की जानकारी नहीं रखते। विज्ञान हो या साहित्य, दोनों ही कल्पना और विचारों के सहारे सच तक पहुँचने की कोशिश करते हैं। विज्ञान 'विज्ञान विधि' की राह पर चलकर वहाँ तक पहुँचने की कोशिश करता है तो साहित्य के पास कल्पनाओं का असीमित आकाश होता है जिसमें उड़ान भरकर साहित्यकार रचनात्मक विधा में सच का चेहरा गढ़ता है। हम उस सच यानी यथार्थ के कितना करीब पहुँच पाते हैं, यह उस साहित्यकार की संवेदनशीलता और लेखन कौशल पर निर्भर करता है।
उन्होंने कहा इसके बावजूद कई ख्यातिनाम साहित्यकारों ने विज्ञान साहित्य रचा और ऐसे कई वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होंने खूब साहित्य लिखा। वे वैज्ञानिक विज्ञान और साहित्य के सेतु बने। प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी डाॅ. जयंत विष्णु नार्लीकर (Dr. Jayant Vishnu Narlikar) एक जाने-माने विज्ञान कथाकार हैं। वे अपनी आत्मकथा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। मेवाड़ी ने कहा कि हमारे देश में भी विज्ञान-साहित्य और विज्ञान-कथा साहित्य भी लेखन की लम्बी यात्रा पूरी कर चुका है, लेकिन साहित्य के इतिहास में इसका उल्लेख न होने के कारण हम अब तक इससे अनभिज्ञ ही रहे हैं। कहानी और उपन्यास विधाओ का भविष्य विज्ञान है क्योंकि विज्ञान जिस तरह सामाजिक और आपसी रिश्तों को बदल रहा है, मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल रहा है, वह सब आने वाले समय में कथा-कहानियों और उपन्यासों में झलकेगा। विज्ञान साहित्य का हिस्सा बनेगा तथा साहित्य और विज्ञान का फासला घटेगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के हिंदी विभागाध्यक्ष तथा महादेवी वर्मा सृजनपीठ कार्यकारिणी के सदस्य प्रो. नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि महादेवी वर्मा सृजन पीठ को उत्तराखंड की साहित्यिक गतिविधियों के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि महादेवी की स्मृति में सामूहिक प्रयासों से सृजन पीठ राष्ट्रीय स्तर के साहित्यिक संस्थान के तौर पर स्थापित हो सके तो यही महादेवी जी के प्रति वास्तविक श्रद्धांजलि होगी।
स्वागत संबोधन में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, डीएसबी परिसर की वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. चंद्रकला रावत ने कहा कि महादेवी वर्मा ने रामगढ़ में भवन बनवाकर यहाँ जो साहित्य सृजन किया, वह साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर है। उनके द्वारा उमागढ़ को साहित्य सृजन के लिए चुना जाना हम सब के लिए अत्यंत गौरव की बात है। इससे इस क्षेत्र को राष्ट्रीय पहचान मिली है।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में वरिष्ठ कवि डाॅ. नंदकिशोर हटवाल, जहूर आलम, हर्ष काफर, प्रो. नवीन चंद्र लोहनी, प्रो. प्रीति आर्या, डाॅ. माया गोला, डाॅ. तेजपाल सिंह और हिमांशु डालाकोटी ने अपनी कविताओं का पाठ किया। सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि लोकेश नवानी ने की। उन्होंने अपनी कविताओं का पाठ भी किया। संचालन पीठ समन्वयक मोहन सिंह रावत और अतिथि व्याख्याता मेधा नैलवाल ने किया। इससे पूर्व दीप प्रज्वलन और महादेवी के चित्र पर माल्यार्पण से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. चंद्रकला रावत तथा पीठ समन्वयक मोहन सिंह रावत ने अतिथियों को शाॅल ओढ़ाकर, पुष्प गुच्छ और स्मृति-चिह्न भेंटकर उनका स्वागत किया।
संविदा प्राध्यापक डाॅ. कंचन आर्या ने मुख्य वक्ता देवेंद्र मेवाड़ी का परिचय प्रस्तुत किया। अंत में हिंदी विभाग की शोधार्थी सृष्टि गंगवार ने सभी के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया। इस अवसर पर डी॓एसबी परिसर की पूर्व निदेशक प्रो. कविता पाण्डे, राजकीय महाविद्यालय, तल्ला रामगढ़ के प्राचार्य डाॅ. नगेन्द्र द्विवेदी, वरिष्ठ पत्रकार अम्बरीश कुमार, डाॅ. मथुरा इमलाल, मोहित जोशी, अक्षय जोशी, शिवानी शर्मा, ललित मोहन, हिमांशु विश्वकर्मा, पूजा गोस्वामी, भगवती, बहादुर सिंह कुँवर, ललित नेगी आदि उपस्थित थे।
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Wed, Mar 26 , 2025, 06:10 PM