नयी दिल्ली। राजधानी के एक निजी चिकित्सा संस्थान ने एक बिरले रोग न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2 (NF2) के साथ-साथ टिबिया (shin bone) में जन्मजात स्यूडोआर्थ्रोसिस से पीड़ित एक नौ वर्षीय लड़की को अपने पैराें पर खड़ा कर के चलने-फिरने लायक बनाने में सफलता हासिल की है।
आकाश हेल्थकेयर (Aakash Healthcare) में ऑर्थोपेडिक्स एवं जॉइंट रिप्लेसमेंट के सीनियर कंसल्टेंट डॉ विक्रम खन्ना ने गुरुवार को यहां संवाददाताओं से कहा, “ मुख्य चुनौती पीड़ित लड़की की हड्डियों के सिरों का आपस में न जुड़ना था, जिसका मतलब है
कि हड्डियां उम्मीद के मुताबिक ठीक नहीं हो पायीं। इसके अलावा, उसकी बोन मैरो बहुत पतली थी और पूरी हड्डी की गुणवत्ता भी खराब थी, जिससे उपचार मुश्किल हो रहा था। भले ही हम उसका इलाज करने में कामयाब हो गये, लेकिन रिफ्रैक्चर का जोखिम बहुत अधिक था। ”
डॉ खन्ना ने बताया कि इन बाधाओं को देखते हुये उनकी मेडिकल टीम ने उपचार के सभी विकल्पों पर सावधानीपूर्वक विचार किया, जबकि पारंपरिक सर्जरी जैसे कि बोन प्लेटिंग, नेलिंग और स्टैंडअलोन बोन ग्राफ्टिंग पर भी विचार किया गया था, डॉक्टरों ने अंततः लड़की के ठीक होने की संभावनाओं को अधिकतम करने के लिये एक कई चरणों में प्रक्रिया सम्पन्न करने का निर्णय लिया।
डॉक्टरों ने सबसे पहले उसके दोनों पैरों से असामान्य टिश्यू वृद्धि को हटाया और एक हड्डी का ग्राफ्ट किया गया। पिंडली की हड्डी को स्थिर करने के लिए एक (टाइटेनियम की लचीली नेलिंग) नेलिंग डाली गयी और फिबुला (टांगों में नीचे , पिंडली की हड्डी की हड्डी के साथ की छोटी हड्डी) की के-वायरिंग के जरिये अतिरिक्त सहायता प्रदान की गयी। अंत में, हड्डियों को जगह पर रखने के लिये एक बाहरी फिक्सेटर लगाया गया।
नसरीन को पैदा होते ही उसे एक ऐसी दुर्लभ बीमारी ने जकड़ लिया, जिसके ठीक होने की उम्मीद शायद ही थी। उसके पैर इतने अधिक झुके हुये थे कि वह चलने-फिरने में असमर्थ थी। छह साल की उम्र में एक आपरेशन के बाद भी वह ठीक नहीं हुई । आकाश हेल्थकेयर ने बालिका का यह इलाज अन्वका फाउंडेशन के साथ मिलकर किया।
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Thu, Feb 27 , 2025, 06:40 PM