Sharad Purnima : कोजागरी पूर्णिमा पर दिखे चंद्रमा की 16 कलाएं; जानिए इसका महत्व!

Tue, Oct 15 , 2024, 09:25 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

Sharad Purnima 2024 : हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) का विशेष महत्व है। इस दिन चंद्रमा (moon) अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण रहता है और पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन धन की देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आती हैं। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि कोजागरी पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी की विधिवत पूजा करने से सुख-समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद मिलता है। कोजागरी पूर्णिमा (Kojagari Purnima) हर साल आश्विन मास (Ashwin month) की पूर्णिमा को मनाई जाती है। पंचांग के अनुसार इस वर्ष शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को है। आइए शरद पूर्णिमा के दिन जानते हैं 16 कलाएं और उनका महत्व...

चंद्रमा की 16 कलाएं
भू - जो पृथ्वी के बड़े भूभाग का भोक्ता बने।

कीर्ति: चारों दिशाओं में सफलता और प्रसिद्धि पाने वाली।

इला : जो अपनी वाणी से सबको मोहित कर ले।

लीला: जो अपनी मनमोहक लीलाओं से सभी को मंत्रमुग्ध कर देती है।

श्री: इस कला में निपुण व्यक्ति भौतिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होता है।

अनुग्रह: जो निस्वार्थ भलाई करता है।

इश्ना: भगवान की तरह शक्तिशाली

सत्य: जो धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करता है।

ज्ञान : नीर, क्षीर और विवेक कलाओं से संपन्न।

योग: अपने मन और आत्मा को एकजुट करना

प्रोहवि: विनम्रता से परिपूर्ण

क्रिया: वह जो अकेले इच्छा से सभी कार्य पूरा करती है।

कांति: चंद्रमा की आभा और सौंदर्य की कला से।

विद्या: सभी वेदों और विद्याओं में पारंगत।

विमला : बिना किसी धोखे के

उत्कर्षिनी: युद्ध और शांति दोनों में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व।

चंद्रमा की 16 कलाओं का महत्व:
ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा की सोलह कलाओं (sixteen phases) का हमारे जीवन के कई पहलुओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ये कलाएँ मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक प्रगति से जुड़ी हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के लिए ये कलाएं बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। किसी भी व्यक्ति के विशेष गुणों को कला कहा जाता है। कुल 64 कलाएँ मानी गई हैं। भगवान श्रीकृष्ण को 16 कलाओं से परिपूर्ण माना जाता है। वहीं भगवान श्री राम को 12 कलाओं का स्वामी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है, तो चंद्रदेव केलव केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही पूरा होता है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है और उसकी किरणें अमृत बरसाती हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर बाहर चांदनी में रखी जाती है।

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