Siddhpeeth Sheetla Mata Temple: बिहार में नालंदा जिले (Nalanda district in Bihar) के मघड़ा गांव स्थित सिद्धपीठ शीतला माता मंदिर (Siddhpeeth Sheetla Mata temple) में पूजा करने से श्रद्धालुओं को निरोगी काया प्राप्त होती है। नालंदा जिले में बिहारशरीफ से कुछ किलोमीटर की दूरी पर परवलपुर-एकंगर सराय मार्ग (Parwalpur-Ekangar Sarai road) पर एक छोटा सा गांव मघड़ा है। इस गांव की पहचान सिद्धपीठ के रूप में की जाती है। शीतला माता मंदिर के प्रति लोगों की आस्था जुड़ी है। यह मंदिर प्राचीनकाल से ही आस्था का केन्द्र रहा है। यहां कभी गुप्तकाल के शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय चीनी चात्री फाह्यान (Chinese scholar Fa-Hien) ने पूजा की थी। उन्होंने अपनी रचना में शीतला माता मंदिर की चर्चा की है।
शीतला माता मंदिर में माथा टेकने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। मां शीतला महारानी अपने भक्तों की खाली झोली जरूर भरती हैं। माता की कृपा जिस पर बनी रहती है, उनपर कोई विपत्ति नहीं आती। माता अपने भक्तों को निरोगी काया देती हैं। खासकर चेचक से पीड़ित (suffering from smallpox) लोग माता शीतला के दरबार में आकर कंचन काया पाते हैं। यहां सभी धर्मों के लोग चेचक के निवारण के लिएमाथा टेकते हैं। मां की कृपा से नि:संतान को संतान और निर्धनों को धन की प्राप्ति होती है। माता शीतला मंदिर के पास ही एक बड़ा सा तालाब है। माता के दर्शन को आने वाले श्रद्धालु तालाब में स्नान करने के बाद ही पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता के मुताबिक तालाब में स्नान करने से चेचक रोग से मुक्ति मिल जाती है। शरीर में जलन की शिकायत है तो उससे भी राहत मिलती है।
माता शीतला का वर्णन स्कंद पुराण (Skanda Purana) में मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शंकर जब अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे तब संपूर्ण सृष्टि भयाकूल हो गयी थी। तभी देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया था। जहां-जहां सती के शरीर का खंड गिरा उसे शक्तिपीठ माना गया। कहा जाता है कि भगवान शंकर ने अपने कंधे पर सती के शरीर के चिपके हुए अवशेष को एक घड़े में रख बिहारशरीफ में पंचाने नदी के पश्चिमी तट पर धरती में छुपाकर अंतर्ध्यान हो गए। बाद के दिनों में गांव के एक राजा वृक्षकेतु के स्वप्न में माता आईं।
माता ने स्वप्न में पंचाने नदी किनारे की जमीन में दबे होने की बात बताई। माता के आदेश के बाद राजा ने उक्त जमीन की खुदाई कराई तो वहां से मां की प्रतिमा मिली, जिसे बाद में पास में मंदिर में स्थापित कर दिया गया, जो आज मघड़ा गांव के शीतला मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। उसी समय से मघड़ा में मेला की शुरुआत हुई, जो अबतक जारी है। जहां पर खुदाई की गई थी उस स्थान ने कुएं का रूप ले लिया, जो आज मिठ्ठी कुआं के रूप में जाना जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार इस कुएं का पानी आज तक नहीं सूखा है। श्रद्धालु इस कुएं की पूजा जरूर करते हैं।
बताया जाता है कि मघड़ा गांव स्थित माता शीतला मंदिर में दिन में दीपक नहीं जलते हैं। धूप, हुमाद और अगरबत्ती जलाना भी मना है। भगवान सूर्य के अस्त होने के बाद ही मंदिर में माता की आरती उतारी जाती है और हवन होता है। कहा जाता है कि माता शीतला के शरीर में बहुत जलन (लहर) रहती है, इसलिए मंदिर में दीपक, धूप या हवन करना वर्जित माना गया है। माता को जलन से राहत मिले, इसके लिए हर दिन सुबह में उन्हें दही और चीनी से स्नानकराया जाता है। सूर्यास्त के बाद सबसे पहले मंदिर के पुजारी दीपक जलाकर आरती करते हैं। उसके बाद श्रद्धालु भी दीपक दीप-धूप जलाते हैं। माता शीतला की पूजा-अर्चना मुख्य रूप से दही और बताशे का भोग लगाकर की जाती है।
मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर की 12 इंच लंबी मां शीतला की प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के मुकुट के ऊपर नौ रेखाएं हैं, जो नौ देवियों की प्रतीक हैं। मां की दायीं ओर सूर्य और बायीं ओर चन्द्र हैं। माता की चार भुजाएं हैं। एक हाथ में कलश है। दूसरे में श्री शीतलाष्टक की पुस्तक है। तीसरे हाथ में विषहरणी नीम की डाली और चौथे हाथ में विभूति और फल की झोली है। इस मंदिर में प्रत्येक मंगलवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है। माता शीतला के दरबार में पशुओं की बलि देने पर पूर्ण पाबंदी है। हालांकि कई श्रद्धालु मनोकामना पूरी होने पर यहां पाठी (बकरी के बच्चे) को दान करते हैं लेकिन उसकी बलि देना वर्जित है इसलिए ऐसे श्रद्धालु मंदिर के पुजारी को संकल्प कराकर पशु को दान देते हैं।
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Mon, Oct 07 , 2024, 12:15 PM