Pitru Paksha Shraddha 2024 : चंद्रमा स्वयं देवता तथा पितरों को भी संतुष्ट करते हैं! अमावस्या तिथि को श्राद्ध अवश्य करें, जानें तीनों पिंडों के मायने 

Wed, Oct 02 , 2024, 05:15 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

Pitru Paksha 2024: मान्यता है कि आश्विन मास के कृष्णपक्ष (Krishna Paksha of Ashwin month) में यमराज सभी पितरों (ancestors) को अपने यहां से छोड़ देते हैं, ताकि वे अपनी संतान से श्राद्ध के निमित्त भोजन कर सकें। इस माह में श्राद्ध न करने वालों के अतृप्त पितर उन्हें श्राप देकर पितृलोक चले जाते हैं और आने वाली पीढ़ियों को भारी कष्ट उठाना पड़ता है। गरुड़ पुराण (Garuda Purana) में कहा गया है कि 

आयु: पुत्रान यश: स्वर्ग कीर्ति पु‌ष्टि बलं श्रियम्, पशून सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृजूननात
 अर्थात श्राद्ध कर्म करने से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, मोक्ष, स्वर्ग कीर्ति,पुष्टि, बल, वैभव, पशुधन, सुख, धन व धान्य वृद्धि का आशीष प्रदान करते हैं।

नाव से नदी पार करने वालों को भी पितरों का तर्पण करना चाहिए। जो तर्पण के महत्व को जानते हैं, वे नाव में बैठने पर एकाग्रचित्त हो अवश्य ही पितरों का जलदान करते हैं। कृष्णपक्ष में जब महीने का आधा समय बीत जाए, उस दिन अर्थात अमावस्या तिथि को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। जिनकी मृत्यु तिथि याद नहीं है या किसी कारणवश पहले छूट गई थी। इसलिए इसे सभी पितरों की अमावस्या कहा जाता है। इस साल की सर्व पितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) बेहद खास है, क्योंकि इस दिन साल का आखिरी और दूसरा सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस दिन श्राद्ध करना शुभ होगा या नहीं। आइए जानते हैं सर्व पितृ अमावस्या की तिथि, किस शुभ मुहूर्त में करें तर्पण और इसका महत्व। 

सर्व पितृ अमावस्या के दिन उन सभी लोगों का श्राद्ध भी किया जाता है जिनका श्राद्ध किसी कारणवश छूट जाता है, या जिनकी मृत्यु तिथि याद नहीं रहती। इस बार सर्व पितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण का साया मंडरा रहा है, ऐसे में ग्रहण के दौरान कैसे होगा श्राद्ध, आइए जानते ज्योतिष गुरू पंडित अतुल शास्त्री से 
किस समय किया जाएगा पितरों का श्राद्ध यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, जिसके कारण सूतक काल मान्य नहीं होगा। इस ग्रहण का भारत में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस दिन श्राद्ध और तर्पण किया जा सकता है। इस सूर्य ग्रहण का किसी भी तरह के धार्मिक कार्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस दिन पितरों का तर्पण करना बहुत महत्वपूर्ण है। तर्पण के लिए आप जल, कुशा और आहुति चढ़ा सकते हैं। पितरों को प्रसन्न करने के लिए आप 2 अक्टूबर को सुबह 11 बजे से लेकर दोपहर 3 बजकर 30 मिनट तक श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं। दान-पुण्य करने के लिए सूर्यास्त तक का समय शुभ माना जाएगा। 

सर्वपितृ अमावस्या के दिन अंतिम श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सभी पितरों के नाम से श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। इस दिन उन सभी रिश्तेदारों के नाम से श्राद्ध किया जाता है जिनकी श्राद्ध तिथि ज्ञात नहीं है। सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण आदि कर्म करने से पितरों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही आपके सभी भूले-बिसरे पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है। जिसका शुभ फल यह होता है कि, आपके जीवन में सुख-समृद्धि आने लगती है आप जीवन में सफलता के पथ पर अग्रसर होते हैं।
 
पितरों की भक्ति से मनुष्य को पुष्टि, आयु, वीर्य और धन की प्राप्ति होती है। ब्रह्माजी, पुलस्त्य, वसिष्ठ, पुलह,अंगिरा, क्रतु और महर्षि कश्यप-ये सात ऋषि महान योगेश्वर और पितर माने गए हैं। मरे हुए मनुष्य अपने वंशजों द्वारा पिंडदान पाकर प्रेतत्व के कष्ट से छुटकारा पा जाते हैं।

महाभारत के अनुसार, श्राद्ध में जो तीन पिंडों का विधान है, उनमें से पहला जल में डाल देना चाहिए। दूसरा पिंड श्राद्धकर्ता की पत्नी को खिला देना चाहिए और तीसरे पिंड को अग्नि में छोड़ देना चाहिए, यही श्राद्ध का विधान है। जो इसका पालन करता है उसके पितर सदा प्रसन्नचित्त और संतुष्ट रहते हैं और उसका दिया हुआ दान अक्षय होता है।

  •  पहला पिंड जो पानी के भीतर चला जाता है, वह चंद्रमा को तृप्त करता है और चंद्रमा स्वयं देवता तथा पितरों को संतुष्ट करते हैं।
  •  इसी प्रकार पत्नी, गुरुजनों की आज्ञा से जो दूसरा पिंड खाती है, उससे प्रसन्न होकर पितर पुत्र की कामना वाले पुरुष को पुत्र प्रदान करते हैं।
  •  तीसरा पिंड अग्नि में डाला जाता है, उससे तृप्त होकर पितर मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण करते हैं।  

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