Pitru Paksha 2024: महाभारत काल से चली आ रही है श्राद्ध और पितृ यज्ञ की परम्परा, कर्ण को भी करना पड़ा था श्राद्ध

Tue, Oct 01 , 2024, 03:30 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष (Shukla Paksha of Bhadrapada month) की पूर्णिमा से शुरू होता है और सर्वपितृ अमावस्या (Sarvapitre Amavasya) तक चलता है।पितृपक्ष इस बार 17 सितंबर से शुरू हो चुके हैं और 2 अक्तूबर तक चलेंगे। पितृपक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म की शुरुआत कहां और कैसे हुई थी? पौ श्रीराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में श्राद्ध की परंपरा (tradition of Shradh) काल से हुई थी। वेदों के पितृयज्ञ को ही पुराणों में विस्तार मिला और उसे श्राद्ध कहा जाने लगा। पितृपक्ष तो आदिकाल से ही रहता आया है, लेकिन जब से इस पक्ष में पितरों के लिए श्राद्ध करने की परंपरा का प्रारंभ हुआ तब से अब तक इस परंपरा में कोई खास बदलाव नहीं हुआ. यह परंपरा भी आदिकाल से ही चली आ रही है।

पितृ पक्ष का सीधा संबंध महाभारत से है। गरुड़ पुराण (Garuna Puran) में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व को बताया था। भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था, महर्षि निमि संभवत: जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर थे। इस प्रकार पहले निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया, उसके बाद अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे। दरअसल, अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू कर दिया था। इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा, “निमि, आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है। चूंकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का कार्य किया है, यह वैसा ही है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया था।उस समय से श्राद्ध को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है। इसके बाद से महर्षि निमि ने भी श्राद्ध कर्म शुरू किए और उसके बाद से सारे ऋषि-मुनियों ने श्राद्ध करना शुरू कर दिए थे। 

क्या पितरों की शांति के लिए दानवीर कर्ण को भी करना पड़ा था श्राद्ध 
महादानी होने के बाद भी ऐसा क्या हुआ जो कर्ण को भी करना पड़ा श्राद्ध जानिए ज्योतिष गुरू पंडित अतुल शास्त्री जी से हिन्‍दु धर्म के लगभग सभी लोग महाभारत व उसके एक-एक पात्र से परिचित होंगे ही और सभी यह भी जानते होंगे कि महाभारत में कर्ण नाम के जो महाबली योद्धा थे, वे वास्‍तव में पांडवों की माता कुंती के सबसे पहले पुत्र थे। महाभारत काल के सबसे बड़े दानवीरों में उनका नाम सर्वोपरि था। हिन्‍दुओं के धार्मिक ग्रंथ महाभारत के अनुसार महावीर कर्ण हर रोज गरीबों और जरूरतमंदों को स्‍वर्ण व कीमती चीजों का दान किया करते थे। लेकिन महाभारत के युद्ध के दौरान जब उनकी मृत्‍यु हुई और वे स्‍वर्ग पहुंचे तो भोजन के रूप में उन्‍हें हीरे,मोती, स्‍वर्ण मुद्राएँ व रत्‍न आदि खाने के लिए परोसे गए।

इस प्रकार का भोजन मिलने की उन्‍हें बिल्‍कुल उम्‍मीद नहीं थी, इसलिए इस तरह का भोजन देख उन्‍हें बहुत बड़ा झटका लगा और उन्होंने स्‍वर्ग के अधिपति भगवान इंद्र से पूछा, ”सभी लोगों को तो सामान्‍य भोजन दिया जा रहा है, तो फिर मुझे भोजन के रूप में स्‍वर्ण,आभूषण, रत्‍नादि क्‍यों परोसे गए हैं?” कर्ण का ये सवाल सुनकर इंद्र ने कर्ण से कहा, ”इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आप धरती के सबसे बडे दानवीरों में भी सर्वोपरि थे और आपके दरवाजे से कभी कोई खाली हाथ नहीं गया, लेकिन आपने कभी भी अपने पूर्वजों के नाम पर खाने का दान नहीं किया। इसीलिए आपके दरबार में आया हुआ हर जरूरतमंद आपसे सन्‍तुष्‍ट व तृप्‍त था, लेकिन श्राद्ध के दौरान आपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया। तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें। इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया और उनकातर्पण किया। ऐसी मान्यता है कि इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा जाता है।

ज्योतिष गुरू पंडित अतुल शास्त्री जी बताते है कि  इस दिन कौवो को आमंत्रित करके उन्हें भी श्राद्ध का भोजन कराना चाहिए, क्योंकि हिंदू पुराण में कौए को देवपुत्र कहा गया है। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार सबसे पहले इंद्र के पुत्र जयंत ने कौए का रूप धारण किया था। त्रेता युग की घटना के अनुसार जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता को घायल कर दिया था। तब भगवान राम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी, जयंत ने क्षमा मांगी तब राम ने वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। हिन्दू परंपरा को मानने वाले लोग भारत के अलावा विदेशों में कहीं भी हों वे अपने पूर्वजों को याद करने के लिए पितृ पक्ष को जरूर मनाते हैं।

युधिष्ठिर ने कौरव और पांडवों की ओर से युद्ध में मारे गए सैनिकों का श्राद्ध किया था
अतुल शास्त्री कह रहे हैं कि कुछ मान्यताएं हैं कि युधिष्ठिर ने कौरव और पांडवों की ओर से युद्ध में मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार के बाद उनका भी श्राद्ध किया था, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हें कर्ण का भी श्राद्ध करना चाहिए, युधिष्ठिर ने कहा कि वह तो हमारे कुल का नहीं है तो मैं कैसे उसका श्राद्ध कर सकता हूं? उसका श्राद्ध तो उसके कुल के लोगों को ही करना चाहिए. इस उत्तर के बाद पहली बार भगवान श्रीकृष्ण ने यह राज खोला था कि कर्ण तुम्हारा ही बड़ा भाई है। अतुल शास्त्री ने बताया कि श्राद्ध का अग्नि देव से भी है संबंध है :जब सभी ऋषि-मुनि देवताओं और पितरों को श्राद्ध में इतना अधिक भोजन कराने लगे तो उन्हें अजीर्ण हो गया और वे सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. इसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा कि इसमें अग्नि देव आपकी मदद कर पाएंगे. इसके बाद अग्नि देव ने कहा कि श्राद्ध में मैं भी आप लोगों के साथ मिलकर भोजन करूंगा इससे आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा. इसलिए हमेशा पितरों को भोजन कराने के लिए श्राद्ध का भोजन कंडे और अग्नि को चढ़ाया जाता है।

Latest Updates

Latest Movie News

Get In Touch

Mahanagar Media Network Pvt.Ltd.

Sudhir Dalvi: +91 99673 72787
Manohar Naik:+91 98922 40773
Neeta Gotad - : +91 91679 69275
Sandip Sabale - : +91 91678 87265

info@hamaramahanagar.net

Follow Us

© Hamara Mahanagar. All Rights Reserved. Design by AMD Groups