Ekadashi Shradh: आज है एकादशी श्राद्ध; जानिए मुहूर्त, पूजा सामग्री और पूजा अनुष्ठान!

Fri, Sep 27 , 2024, 09:12 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

हिंदू कैलेंडर(Hindu calendar) के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष(Pitru Paksha) कहा जाता है। पितृ पक्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से शुरू होता है और भाद्रपद माह की अमावस्या को समाप्त होता है। पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष की पांढरवाड़ा में एकादशी श्राद्ध 27 सितंबर को है.

शास्त्र के अनुसार, जिस व्यक्ति की मृत्यु किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष तिथि(Krishna Paksha date) को होती है, उसका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष तिथि पर ही किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति को अपने पूर्वजों की मृत्यु की तिथि नहीं पता है तो ऐसी स्थिति में भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि यानी पितृपक्ष के आखिरी दिन इन पूर्वजों का श्राद्ध कर्म किया जाता है। आइए जानते हैं कैसे करें एकादशी श्राद्ध और श्राद्ध का शुभ समय।

कुतुप मुहूर्त - सुबह 11:48 बजे से दोपहर 12:36 बजे तक

अवधि - 00 घंटे 48 मिनट

रोहिण मुहूर्त - दोपहर 12:36 बजे से दोपहर 1:24 बजे तक

अवधि - 00 घंटे 48 मिनट

पीक टाइम - दोपहर 1:24 बजे से 3:48 बजे तक

अवधि - 2 घंटे 24 मिनट

श्राद्ध पूजा की सामग्री
कुंकू, सिन्दूर, छोटी सुपारी, रक्षासूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, देशी घी, माचिस, शहद, काले तिल, तुलसी पत्ता, सुपारी, जौ, हवन सामग्री, गुड़, मिट्टी का दीपक, रुई की बाती, धूपबत्ती, धूप, दही, जौ का आटा, गंगा जल, खजूर, केला, सफेद फूल, उदीद, गाय का दूध, घी, खीर, चावल, मूंग, गन्ना।

एकादशी श्राद्ध अनुष्ठान
श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) केवल एक उचित विद्वान ब्राह्मण द्वारा ही किया जाना चाहिए। श्राद्ध कर्म करने के बाद ब्राह्मणों को पूरी श्रद्धा से दान दिया जाता है और अगर आप किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करने के साथ-साथ दान भी देते हैं तो आपको बहुत पुण्य मिलता है। इसके साथ ही गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों को भी भोजन का कुछ हिस्सा देना चाहिए।

यदि संभव हो तो श्राद्ध गंगा नदी के तट पर करना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो इसे घर पर भी किया जा सकता है। श्राद्ध के दिन ब्राह्मण भोजन का आयोजन करना चाहिए। भोजन के बाद उन्हें दान और दक्षिणा से संतुष्ट करें।

श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए। किसी योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रों का जाप करें और पूजा के बाद जल से तर्पण करें। इसके बाद गाय, कुत्ते, कौए आदि के लिए भोजन बनाना चाहिए। उन्हें अन्न दान करते समय अपने पितरों को याद करना चाहिए। मन ही मन उनसे श्राद्ध करने का निवेदन करना चाहिए।

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