Vastu Special : दिशाओं का सही उपयोग करें और जीवन को बनाएं सुखी!

Wed, Sep 25 , 2024, 08:35 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

वास्तु: वास्तु शास्त्र में दिशाओं को बहुत महत्व दिया गया है। वास्तु के अनुसार 8 दिशाएं होती हैं यानी 4 मुख्य दिशाएं पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण हैं। इसके अलावा 4 उपदिशाएं पूर्वोत्तर (North-East), दक्षिणपूर्व (South-East), दक्षिणपश्चिम (South-West), उत्तर-पश्चिम (North-West) हैं।


वास्तु का मापन उत्तर-पश्चिम के आधार पर किया जाता है। वास्तु में हर दिशा का विशेष महत्व (Special importance) होता है। अलग-अलग दिशाएँ अलग-अलग ग्रहों से मेल खाती हैं। मनुष्य के जीवन में सुख-शांति (Happiness and peace) के लिए दिशा का सही रहना बहुत जरूरी माना गया है। आइए जानते हैं वास्तु में प्रत्येक दिशा का क्या महत्व है?

पूर्व दिशा:
भगवान सूर्य और भगवान इंद्र को पूर्व दिशा का शासक ग्रह माना जाता है। यह दिशा अच्छे स्वास्थ्य, बुद्धि, धन, खुशी और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि घर बनाते समय घर के पूर्वी हिस्से में कुछ जगह खाली रखनी चाहिए। यह जगह नीची रखनी चाहिए. माना जाता है कि ऐसा न करने पर घर के मुख्य सदस्य के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।

पश्चिम दिशा:
पश्चिम दिशा के स्वामी ग्रह शनि और वरुण हैं। यह दिशा सम्मान, सफलता, अच्छे भविष्य और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। माना जाता है कि इस दिशा में गड्ढा, दरार या अन्य दोष होने से मानसिक भ्रम हो सकता है। कार्यों में बाधाएं आ सकती हैं।

उत्तर दिशा:
उत्तर दिशा के स्वामी बुध और देवता कुबेर हैं। यह दिशा जीवन में हर प्रकार का सुख प्रदान करती है। यह दिशा बुद्धि, ज्ञान, चिंतन, मनन और धन के लिए शुभ मानी जाती है। यदि आप उत्तर दिशा में खाली स्थान छोड़कर घर बनाते हैं तो आपको सभी प्रकार की भौतिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

दक्षिण दिशा:
मंगल और यम दक्षिण दिशा के स्वामी ग्रह हैं। यह दिशा सफलता, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा और धैर्य का प्रतीक मानी जाती है। यह दिशा पिता के सुख का कारण भी मानी जाती है। दक्षिण दिशा को आप जितना अधिक महत्व देंगे यह उतना ही लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

दक्षिणपूर्व दिशा:
वास्तु में दक्षिण-पूर्व दिशा का स्वामी ग्रह शुक्र है और इसे अग्नि का देवता माना जाता है। यह दिशा स्वास्थ्य से संबंधित है। यह दिशा उचित नींद का संकेत देती है। दक्षिण-पूर्व दिशा में पानी का टैंक रखना अच्छा नहीं माना जाता है। इससे स्वास्थ्य ख़राब होता है.

नैऋत्य दिशा:
इस दिशा का स्वामी राहु और नैरुति नामक राक्षस है। यह दिशा राक्षस, बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति या भूत-प्रेत की दिशा है। इसलिए वास्तु में इस दिशा को कभी भी खाली नहीं छोड़ने की सलाह दी जाती है।

उत्तर पश्चिम दिशा:
इस दिशा को चंद्र देव और वायु देवता का निवास स्थान माना जाता है। ये दोस्ती और दुश्मनी को दर्शाते हैं। यह दिशा मानसिक विकास की दिशा मानी जाती है। इस दिशा में कोई भी दोष शत्रुओं की संख्या में वृद्धि का संकेत माना जाता है।

पूर्वोत्तर दिशा:
उत्तर-पूर्व दिशा का स्वामी ग्रह देवगुरु गुरु को माना जाता है। यह दिशा बुद्धि, ज्ञान, विवेक, धैर्य और साहस का प्रतीक मानी जाती है। वास्तु के अनुसार उत्तर-पूर्व दिशा की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिशा को खुला रखना चाहिए और निर्माण कार्य कम से कम करना चाहिए। यदि यह दिशा दोष मुक्त हो तो आध्यात्मिक, मानसिक और आर्थिक समृद्धि आती है। वास्तु के अनुसार इस दिशा में कोई भी शौचालय, सेप्टिक टैंक या कूड़ेदान नहीं रखना चाहिए।

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