घोषित पुरस्कार रद्द करने को बताया अघोषित इमरजेंसी
मुंबई। विधानसभा में विपक्ष के नेता अजित पवार (Ajit Pawar) ने साहित्य के क्षेत्र में सरकारी दखल का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने उत्कृष्ट साहित्य पुरस्कार के लिए चुनी गईं अनघा लेले से पुरस्कार वापस लेने और पुरस्कार चयन समिति (award selection committee) को बर्खास्त करने के सरकार के फैसले को अघोषित इमरजेंसी बताया। इस अघोषित इमरजेंसी का विरोध करते हुए नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि साहित्य, कला, खेल, सांस्कृतिक मामलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए।
यहां विधान भवन (Vidhan Bhavan) में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में अजित पवार ने कहा कि वर्ष 2021 के लिए उत्कृष्ट साहित्य के पुरस्कार 6 दिसंबर 2022 को घोषित किए गए। इसमें कुल 33 लोगों को पुरस्कार के लिए चुना गया। इसमें अनुवादित साहित्य के तर्कतीर्थ लक्ष्मण शास्त्री जोशी पुरस्कार के लिए अनघा लेले का नाम भी शामिल था। उनका चयन कोबाड गांधी पुस्तक के अनुवाद के लिए किया गया था। 6 दिसंबर को पुरस्कार घोषित हुए, लेकिन 6 दिन बाद इसे वापस ले लिया गया। 12 दिसंबर को राज्य सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए साहित्य पुरस्कारों की चयन समिति को बर्खास्त कर दिया और कोबाड गांधी पुस्तक के अनुवाद के लिए घोषित पुरस्कार को रद्द कर दिया। अजित पवार ने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में यह सरकार का अनावश्यक हस्तक्षेप है और हम इसका विरोध करते हैं।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि इसके पहले हमने भी कई वर्षों तक सरकार में जिम्मेदारी संभाली है, लेकिन साहित्य, कला क्षेत्र में कभी भी हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं किया। क्षेत्र के विशेषज्ञ जैसा फैसला लेते थे, शासक के रूप में हम उस फैसले का आदर करते थे। सुनने में आया है कि घोषित पुरस्कार को रद्द करने की घटना आपातकाल के दौरान हुई थी, लेकिन वह घोषित इमरजेंसी थी। उसकी कीमत उस वक्त के शासकों को भुगतनी पड़ी थी। राज्य में मौजूदा सरकार ने अवार्ड रद्द कर अघोषित आपातकाल लगाने की कोशिश की है और हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं।
उन्होंने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में इस सरकार का यह पहला हस्तक्षेप नहीं है। वर्धा में होने वाले अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष पद के लिए वरिष्ठ संपादक सुरेश द्वादशीवार का चयन लगभग तय था, लेकिन उनका भाषण सरकार को पसंद नहीं आएगा, इस डर से सरकार के लोगों ने आयोजकों पर दबाव डाला और उनका चयन नहीं होने दिया। इस तरह सरकार साहित्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्र को अपने नियंत्रण में करने की कोशिश कर रही है। अजित पवार ने कहा कि महाराष्ट्र के साहित्यकार निडर और इस तरह के दबाव के आगे झुकने वाले नहीं है। शरद बाविस्कर और आनंद करंदीकर का पुरस्कार लेने से इंकार करना सरकार के कार्यों का विरोध करने वाला है। वरिष्ठ साहित्यकार प्रज्ञा दया पवार और कवयित्री नीरजा ने साहित्य संस्कृति मंडल के सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया है। यह सरकार के लिए शर्मनाक बात है।
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Wed, Dec 14 , 2022, 07:55 AM