नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने उत्तर प्रदेश के सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति राजेंद्र बिहारी लाल सहित कई लोगों के खिलाफ दर्ज पांच मुकदमों को शुक्रवार को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा (Manoj Mishra) की पीठ ने ये टिप्पणी करते हुए कि आपराधिक कानून निर्दोष नागरिकों को परेशान करने का हथियार नहीं हो सकता, यह आदेश पारित किया।
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के विश्वविद्यालय के कुलपति और उसके अधिकारियों के खिलाफ हिंदुओं के ईसाई धर्म में "सामूहिक धर्मांतरण" के कथित अपराध को लेकर आपराधिक मुकदमे दर्ज किये गये थे। ये मामले उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 सहित विभिन्न अपराधों के लिए शुरू किए गए थे।
पीठ की ओर से न्यायमूर्ति पारदीवाला ने 158 पृष्ठों का निर्णय लिखा। इसमें पाया कि ये प्राथमिकियाँ कानूनी कमियों, प्रक्रियागत खामियों और विश्वसनीय सामग्री के अभाव के कारण दूषित थीं। उन्होंने फैसला सुनाया कि इस तरह के अभियोजन को जारी रखना "न्याय का उपहास" होगा। शीर्ष अदालत ने पाया कि लाल के खिलाफ शिकायत दर्ज करने वाला व्यक्ति ऐसी शिकायत दर्ज करने के लिए सक्षम नहीं था। उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 4 के तहत कोई भी अजनबी या तीसरा पक्ष शिकायत दर्ज नहीं कर सकता।
वर्ष 2024 के संशोधन द्वारा हालांकि, इस प्रतिबंध को हटा दिया गया था, जिससे कोई भी व्यक्ति शिकायत दर्ज करने के लिए सक्षम हो गया, फिर भी अदालत ने माना कि 2024 का संशोधन इस मामले में लागू नहीं होगा। अदालत ने हालाँकि, कहा कि मामले में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तहत आरोपित कुछ अपराधों की आगे की जाँच की आवश्यकता है। पीठ ने कहा, "ये आरोप अभी बंद नहीं हुए हैं। हालाँकि, लाल को गिरफ्तारी से पहले दी गई अंतरिम सुरक्षा जारी रहेगी।"
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