पुणे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Minister Rajnath Singh) ने कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) के दौरान दुनिया ने भारतीय सैनिकों (Indian soldiers) की वीरता और देश की बढ़ती स्वदेशी शक्ति को देखा और उसका लोहा माना।
सिंह ने गुरुवार को पुणे में सिम्बायोसिस स्किल्स एंड प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में विद्यार्थियों से कहा कि ऑपरेशन सिंदूर भारत की बढ़ती स्वदेशी शक्ति का एक ज्वलंत प्रमाण है, जो देश में आत्मनिर्भर रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के सरकार के अथक प्रयासों से प्राप्त हुआ है। उन्होंने विद्यार्थियों को विश्वास और दृढ़ता जैसे गुणों के महत्व समझाते हुए कहा कि जब सरकार ने रक्षा क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाना शुरू किया, तो आरंभ में यह कठिन लग रहा था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में घरेलू रक्षा विनिर्माण के विस्तार में कोई कसर न छोड़ते हुए पूरी कोशिश की गयी। इसी संकल्प के कारण सकारात्मक परिणाम मिलने लगे।
उन्होंने कहा, "हमने रक्षा क्षेत्र में बदलाव का संकल्प लिया है क्योंकि देश की स्वतंत्रता के बाद से ही हम हथियारों के लिए दूसरे देशों पर बहुत अधिक निर्भर रहे हैं। हम हथियार खरीदने के आदी हो गए थे और यह सब इसलिए हो रहा था क्योंकि हमारे पास भारत में निर्माण करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी थी। हमारे पास रक्षा निर्माण को बढ़ावा देने संबंधी क़ानून भी नहीं थे। इसमें बदलाव की आवश्यकता थी। अब हमारा संकल्प है कि भारत अपने सैनिकों के लिए स्वदेश में निर्मित हथियार बनाए। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पूरी दुनिया ने हमारे सैनिकों की वीरता देखी। उन्होंने निर्धारित व्यापक लक्ष्य देश में निर्मित रक्षा उपकरणों के उपयोग से ही हासिल किया।"
रक्षा निर्माण में युवाओं के योगदान की चर्चा करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में सालाना रक्षा क्षेत्र का उत्पादन 46 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर रिकॉर्ड डेढ़ लाख करोड़ रुपये का हो गया है। इसमें निजी क्षेत्र का योगदान लगभग 33 हजार करोड़ रुपये का है। इस दौरान उन्होंने 2029 तक तीन लाख करोड़ रुपये के रक्षा विनिर्माण लक्ष्य और 50 हजार करोड़ रुपये का निर्यात लक्ष्य हासिल होने का विश्वास व्यक्त किया।
उन्होंने विद्यार्थियों से शैक्षणिक उपलब्धियों से आगे बढ़कर सृजनकर्ता, नवोन्मेषक और राष्ट्रीय विकास में योगदानकर्ता बनने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि सच्ची सफलता केवल शैक्षणिक उपाधि हासिल करने में नहीं, बल्कि सामाजिक लाभ के लिए ज्ञान के सार्थक उपयोग में निहित है।
श्री सिंह ने भारत के भविष्य को आकार देने में कौशल विकास के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा, "अब हम आप क्या जानते हैं? के युग में नहीं हैं, बल्कि दुनिया पूछती है, आप क्या कर सकते हैं? इससे स्पष्ट है जो ज्ञान उपयोग में नहीं लाया जा सकता, वह अधूरा है।" उन्होंने कहा कि कौशल ही सीखने और काम को अंजाम देने के बीच का सेतु है।
उन्होंने प्रौद्योगिकी में विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धि (एआई) के प्रभाव का उल्लेख करते हुए इस आशंका को निर्मूल बताया कि इससे नौकरी जाएंगी और मानव श्रम की आवश्यकता समाप्त होगी। उन्होंने कहा कि एआई कभी मानव श्रम की जगह नहीं लेगा, बल्कि जो लोग एआई का उपयोग करते हैं, वे उन लोगों की जगह लेंगे जो इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं।
रक्षा मंत्री ने कहा कि तकनीक को मानवीय संवेदनशीलता, मूल्यों और नैतिकता का विकल्प नहीं, बल्कि साधन मात्र बनाए रखना चाहिए। उन्होंने सोशल मीडिया और बाहरी दबावों से उत्पन्न चुनौतियों की भी चर्चा की। उन्होंने युवाओं से तुलनाओं में उलझने की बजाय अपने सपनों को साकार करने का आह्वान किया।
उन्होंने भारत के 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य के साथ अमृत काल में प्रवेश करने के युग में को लेकर विद्यार्थियों से कहा कि वे अपने जीवन के सबसे निर्णायक दौर में प्रवेश कर रहे हैं और अगला 20 से 25 साल उनके करियर को आकार देने के साथ ही राष्ट्र के भाग्य को भी निर्णायक स्वरूप प्रदान करेगा। उन्होंने विद्यार्थियों से अपनी महत्वाकांक्षा को देश में बदलाव का प्रेरक बनाने का आह्वान किया।
इस समारोह में श्री सिंह और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्कूल ऑफ डिफेंस एंड एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर राज्य सरकार के अन्य मंत्री और विश्वविद्यालय के कुलपति उपस्थित थे।
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Thu, Oct 16 , 2025, 09:23 PM