नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि सीआरपीसी (CrPC) में स्पष्ट प्रावधानों के अभाव के बावजूद आपराधिक मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट को किसी व्यक्ति को जाँच के लिए उसकी आवाज़ का नमूना देने का आदेश देने का अधिकार दिया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन (K. Vinod Chandran) की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की।
पीठ ने रितेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2019) मामले में बताया कि इस न्यायालय ने केवल अभियुक्त की बात नहीं की थी और जानबूझकर 'व्यक्ति' शब्द का प्रयोग किया था क्योंकि आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध नियम किसी भी व्यक्ति पर समान रूप से लागू होता है, चाहे वह अभियुक्त हो या गवाह। शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि जब तक सीआरपीसी में स्पष्ट प्रावधान शामिल नहीं किए जाते, न्यायिक मजिस्ट्रेट को उक्त निर्णय के आधार पर ऐसा करने का अधिकार होगा।
पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि यह मामला सरकार के पास भी लंबित था और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) लागू होने के साथ इसे विशेष रूप से धारा 349 के तहत शामिल किया गया है। शीर्ष अदालत ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ राहुल अग्रवाल की अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें एक आपराधिक मामले में गवाह को धमकाने के मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा एक व्यक्ति को आवाज का नमूना देने के आदेश को रद्द कर दिया गया था।
पीठ ने कहा, "इसलिए हमें इस प्रश्न पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है कि वर्तमान मामले में सीआरपीसी लागू होगी या बीएनएसएस। यदि यह सीआरपीसी है तो रितेश सिन्हा मामले में तीन न्यायाधीशों की पीठ का निर्णय, काठी कालू ओघड़ (1961) मामले में इस न्यायालय द्वारा अपनाए गए समान सिद्धांत के आधार पर, हस्तलिपि, हस्ताक्षर और अंगुलियों के निशान प्रस्तुत करने की अनुमति देता है।"
अदालत ने ज़ोर देकर कहा कि उक्त नमूनाकरण ध्वनि नमूनाकरण के समान है, जो अब उन्नत तकनीक के कारण संभव है। पीठ ने कहा, "यदि बीएनएसएस लागू है तो ऐसे नमूने के लिए एक विशिष्ट प्रावधान मौजूद है।"
शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल अंगुलियों के निशान, हस्ताक्षर या हस्तलिपि का नमूना प्रस्तुत करने से व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
पीठ ने कहा, "इसकी तुलना जाँच में प्राप्त सामग्री से की जानी चाहिए, जो अकेले ही नमूना देने वाले व्यक्ति को दोषी ठहरा सकती है और जो गवाही देने की बाध्यता के अंतर्गत नहीं आएगा। इस प्रकार यह नियम के विरुद्ध नहीं होगा।
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