Mahakaleshwar Aarti: महाकालेश्वर की अनोखी आरती: जानिए उज्जैन महाकालेश्वर की भस्म आरती के बारे में!

Sun, Oct 12 , 2025, 11:36 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

Mahakaleshwar Aarti: उज्जैन स्थित भगवान शिव का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग एक अत्यंत प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। देश भर से लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। खासकर सुबह 4 बजे होने वाली भस्मआरती का यहाँ विशेष आकर्षण होता है। इस आरती में शामिल होने के लिए देश-विदेश से भक्त यहाँ आते हैं। जानकारी के अनुसार, महाकाल बाबा के मंदिर में प्रतिदिन सुबह भस्म आरती की जाती है। भस्म को भगवान शिव का वस्त्र माना जाता है। भस्म इस बात का भी सूचक है कि सब कुछ नश्वर है।

भस्म धारण करके भगवान शिव सभी को यह बताना चाहते हैं कि यही इस शरीर का परम सत्य है। उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की 'भस्म आरती' एक अत्यंत प्रसिद्ध, पवित्र और अद्वितीय धार्मिक अनुष्ठान है। 'भस्म' का अर्थ 'राख' होता है और इस आरती में प्रयुक्त राख को लेकर कई लोगों के मन में जिज्ञासा और शंकाएँ होती हैं। क्या यह राख सचमुच श्मशान से आती है? डॉ. भूषण ज्योतिर्विद द्वारा इसका स्पष्ट और विस्तृत विवरण नीचे दिया गया है:

भस्म आरती क्या है?
महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन सुबह 4 बजे 'भस्म आरती' होती है, जो पूरे भारत में भस्म से की जाने वाली एकमात्र आरती है। इस आरती में भगवान महाकाल के शिवलिंग पर भस्म चढ़ाई जाती है।

भस्म आरती में प्रयुक्त भस्म कहाँ से आती है?

पिछले इतिहास पर नज़र डालें तो...
ऐतिहासिक और पारंपरिक रूप से, श्मशान में मानव दाह संस्कार के बाद बची हुई राख का उपयोग करने की परंपरा थी। महाकाल मृत्यु के देवता हैं, और शैव परंपरा में मृत शरीर की भस्म (अस्थियों की राख) को मृत्यु के प्रतीक के रूप में उपयोग करना अत्यंत रहस्यमय और तकनीकी दृष्टिकोण से किया जाता था। उज्जैन को एक महान श्मशान माना जाता है। इसलिए, इस परंपरा को आध्यात्मिक और तकनीकी दृष्टि से पूजनीय माना जाता था।

वर्तमान स्थिति:
मानव दाह संस्कार की राख का उपयोग अब बंद कर दिया गया है। इसके स्थान पर शुद्ध गोचला (गाय का मूत्र, गोबर, चावल का भूसा, तुलसी आदि का मिश्रण) का उपयोग किया जाता है। क्योंकि स्वास्थ्य और विधि-विधान की दृष्टि से और भक्तों की आस्था बनाए रखने के लिए, शास्त्रीय किन्तु सुरक्षित भस्म का निर्माण किया जाता है। इसके लिए, मंदिर प्रशासन एक विशिष्ट अनुष्ठान में तैयार की गई भस्म का उपयोग करता है।

भस्म आरती का धार्मिक, आध्यात्मिक महत्व
मृत्यु का स्मरण
: "श्मशान भस्म" का अर्थ है मृत्यु को स्वीकार करना। इसलिए, यह अहंकार के नाश, वैराग्य की प्रेरणा और भ्रमों को भूलने का प्रतीक है।

तांत्रिक शिव साधना: शैव और तांत्रिक परंपराओं में, भस्म का अर्थ शुद्धि और जागरूकता है।

शिव का स्वरूप: भस्मधारी: भगवान शिव सदैव अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं, इसलिए यह आरती उन्हें अत्यंत प्रिय मानी जाती है।

भस्म आरती में भाग लेने के नियम
केवल पुरुषों को ही प्रवेश की अनुमति है (विशेषकर आरती के दौरान), और उन्हें भी धोती पहनकर स्नान करना आवश्यक है।

आरती के बाद महिलाओं को दर्शन की अनुमति है।
कई बार, इस आरती को देखने के लिए ऑनलाइन बुकिंग के माध्यम से अनुमति लेनी पड़ती है।

निष्कर्ष
पूर्व में, भस्म आरती में श्मशान से प्राप्त मानव भस्म का उपयोग किया जाता था,
लेकिन वर्तमान में यह शुद्ध धार्मिक और गौ भस्म है।
फिर भी, शिव भक्तों द्वारा मृत्यु के सत्य और शिव तत्व के रहस्य के प्रतीक के रूप में यह आरती अत्यंत श्रद्धा के साथ की जाती है।

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