नयी दिल्ली। वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद की बैठक से पहले वाटर प्यूरिफायर, फिल्टर और इनसे संबंधित सेवाओं को पांच प्रतिशत के स्लैब में लाने की मांग की गयी है। वाटर प्यूरिफायर और फिल्टर बनाने वाली कंपनियों, इनके डीलरों और कलपुर्जों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के अलाभकारी संगठन वाटर क्वालिटी इंडिया एसोसिएशन ने इस संबंध में केंद्रीय राजस्व सचिव को एक पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि स्वच्छ पेय जल तक पहुंच एक मूलभूत आवश्यकता है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board) की रिपोर्ट के अनुसार, देश के कई हिस्सों में भूजल पीने लायक नहीं है और इसलिए लोग मजबूरी में वाटर प्यूरिफायर और फिल्टर इस्तेमाल करते हैं।
इसके बावजूद देश की सिर्फ छह प्रतिशत आबादी वाटर प्योरिफियर का इस्तेमाल करती है जबकि अन्य विकासशील देशों में यह आंकड़ा करीब 20 प्रतिशत है। एसोसिएशन ने 23 अगस्त को लिखे इस पत्र में तर्क दिया है कि जीएसटी में 18 प्रतिशत के दर स्लैब के कारण आम लोगों के लिए वाटर प्यूरिफायर काफी महंगा पड़ता है। इस पर कर की दर कम करने से ज्यादा लोग इसे खरीद पायेंगे और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी काफी सुधार होगा। उल्लेखनीय है कि यह मांग कर स्लैब में बड़े सुधारों को लेकर जीएसटी काउंसिल की तीन और चार सितंबर को होने वाली दो दिवसीय बैठक से पहले की गयी है।
आधिकारिक रूप से अभी सिर्फ इतना कहा गया है कि अब जीएसटी में चार की जगह दो कर स्लैब होंगे और आम लोगों के उपभोग की वस्तुओं पर कर की दरें कम होंगी। हालांकि उम्मीद की जा रही है कि नये कर स्लैब पांच और 18 प्रतिशत के होंगे। पत्र में कहा गया है कि एक वाटर प्यूरिफायर लगाने से सालाना प्लास्टिक की 12,000 बोतलों के इस्तेमाल से बचा जा सकता है। इसमें पानी को उबालकर पीने की जरूरत नहीं रहती जिससे ईंधन की भी बचत होती है। अभी इसका बाजार महज 4,400 करोड़ रुपये का है, इसलिए इसे 18 प्रतिशत से पांच प्रतिशत के स्लैब में लाने से भी सरकार को राजस्व में कोई खास नुकसान नहीं होगा।
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