फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन ने ईरान पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया की शुरू

Fri, Aug 29 , 2025, 11:56 AM

Source : Uni India

न्यूयॉर्क: फ्रांस(France), जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम (Germany and the United Kingdom) ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम के लिए उस पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध फिर से लगाने की प्रक्रिया शुरू की है। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, तथाकथित स्नैपबैक प्रतिबंधों को लागू करने का अमेरिका ने स्वागत किया है जो कि ईरान के बढ़ते परमाणु कार्यक्रम (Iran's growing nuclear programme) पर लगाम लगाने के कूटनीतिक प्रयासों में आई रुकावट के बीच हुआ है। तेहरान ने इस कदम की निंदा की है और चेतावनी दी है कि प्रतिबंधों को दोबारा लागू करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। "ई3" देशों ने गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को सूचित किया कि वे स्नैपबैक तंत्र को सक्रिय कर रहे हैं जिसके अंतर्गत 2015 के ईरान परमाणु समझौते (Iran nuclear deal) में पहले हटाए गए सभी संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों को फिर से लागू किया जाएगा। 

इस तंत्र को उस समझौते के भाग के रूप में शामिल किया गया था जिसे औपचारिक रूप से संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) कहा जाता है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा 2018 में अमेरिका को इस समझौते से बाहर निकालने के बाद ईरान ने परमाणु समझौते का तेजी से उल्लंघन किया है। फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन के विदेश मंत्रियों ने कल एक संयुक्त बयान में कहा, “आज, ईरान द्वारा जेसीपीओए का गैर-अनुपालन स्पष्ट रूप से एवं जानबूझकर किया जा रहा है और ईरान में प्रमुख प्रसार संबंधी चिंताजनक स्थल अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) की निगरानी से बाहर हैं।” बयान में आगे कहा गया, “ईरान के पास अपने उच्च संवर्धित यूरेनियम भंडार के लिए कोई नागरिक औचित्य नहीं है इसलिए उसका परमाणु कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए एक स्पष्ट खतरा बना हुआ है।”

ईरान के विदेश मंत्रालय ने इस कदम की निंदा करते हुए इसे उत्तेजक एवं अनावश्यक प्रसार करार दिया जिसका उचित जवाब दिया जाएगा। मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि ई3 का निर्णय आईएईए के साथ ईरान की बातचीत एवं सहयोग की चल रही प्रक्रिया को गंभीर रूप से कमजोर करेगा। ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को विकसित करने में दशकों लगाए हैं और उसका कहना है कि यह पूर्ण रूप से शांतिपूर्ण ऊर्जा उद्देश्यों के लिए है। ईरान के अनुसार, वह घरेलू ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने और निर्यात के लिए और अधिक तेल मुक्त करने के लिए अतिरिक्त परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की योजना बना रहा है।

संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी संस्था के अनुसार, किसी भी अन्य देश के पास उतना यूरेनियम नहीं है जितना ईरान के पास है जबकि उसके पास परमाणु हथियार कार्यक्रम भी नहीं है। 2015 में हुए समझौते के अंतर्गत ईरान ने अपने अपकेन्द्रण यंत्र पर प्रतिबंध लगाने, अपने यूरेनियम भंडार में नाटकीय रूप से कमी लाने तथा अपने यूरेनियम संवर्धन स्तर को 20 प्रतिशत से घटाकर 3.67 प्रतिशत तक रखने पर सहमति व्यक्त की थी। ईरान ने अपनी परमाणु सुविधाओं का और अधिक अंतरराष्ट्रीय निरीक्षणों पर भी सहमति व्यक्त की थी जिसके बदले में तेहरान को अरबों डॉलर की प्रतिबंधों से राहत मिली थी। लेकिन 2018 में ट्रम्प प्रशासन द्वारा परमाणु समझौते से हटने के बाद से ईरान ने अपने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को काफी बढ़ा दिया है।

तेहरान ने 3.6 प्रतिशत तक संवर्धित लगभग 150 किलोग्राम यूरेनियम के साथ शुरुआत की थी जो परमाणु रिएक्टरों एवं शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के लिए पर्याप्त है लेकिन अब यह 2018 के स्तर से 50 गुना अधिक है। स्नैपबैक प्रक्रिया में 30 दिन लगेंगे जिससे तेहरान को प्रतिबंधों को फिर से लागू होने से रोकने के लिए कार्रवाई करने का समय मिल जाएगा। स्नैपबैक प्रतिबंधों को लागू करने की क्षमता अक्टूबर 2025 में समाप्त होने वाली है जिसके कारण ई3 देशों ने इसे अभी करने का निर्णय लिया है। गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष को लिखे पत्र में, ई3 देशों के विदेश मंत्रियों ने लिखा, “वे ईरान के महत्वपूर्ण गैर-निष्पादन के मुद्दे का समाधान करने का प्रयास जारी रखेंगे और पुष्टि करते हैं कि अगर इस मुद्दे का समाधान 30 दिनों से पहले हो जाता हैतो ई3 देश सुरक्षा परिषद को तदनुसार सूचित करेंगे।”

आईएईए के प्रमुख ने गुरुवार को नए सिरे से निरीक्षण के प्रति आशा व्यक्त करते हुए कहा, “मुझे लगता है कि बातचीत में सकारात्मक तत्व सामने आएंगे जो संभवतः व्यापक प्रतिबंधों की संभावना को टालने में मदद कर सकते हैं।” महत्वपूर्ण रूप से अमेरिका ने ई3 द्वारा त्वरित प्रतिबंध लगाने के कदम का स्वागत किया है तथा कहा है कि वह नई कूटनीति के लिए तैयार है। संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के राजदूत डैनी डैनन ने भी इस कदम का स्वागत किया तथा इसे ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने तथा ईरानी शासन पर दबाव बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम करार दिया।

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