Garuda Purana : पुराणों और हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, पितृलोक का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर होता है। यह समय की अवधारणा को समझने का एक तरीका है, जहाँ विभिन्न लोकों में समय की गति अलग-अलग मानी जाती है। शास्त्रों में पितृलोक को एक ऐसा स्थान माना गया है जहाँ आत्माएँ मृत्यु के बाद कुछ समय तक निवास करती हैं, खासकर वे जो मोक्ष प्राप्त नहीं कर पातीं। ये ग्रंथ न केवल पितृलोक का वर्णन करते हैं, बल्कि यहाँ की समयावधि का भी विस्तार से उल्लेख करते हैं। गरुड़ पुराण और धर्मग्रंथों (Garuda Purana and scriptures) के अनुसार, देवताओं, मनुष्यों और पितरों के लिए काल गणना अलग-अलग है। पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष 2025 7 सितंबर से शुरू होगा। वहीं, इसका समापन पितृ अमावस्या यानी 21 सितंबर, 2025 को होगा।
गरुड़ पुराण के अनुसार
मनुष्य के 360 दिन देवताओं के एक दिन के समान होते हैं। मनुष्य के 30 दिन पितरों के एक दिन के समान होते हैं। इस गणना के अनुसार, पितृ लोक (Pitru Loka) का एक महीना पृथ्वी के 30 वर्षों के बराबर और पितृ लोक का एक वर्ष पृथ्वी के 360 वर्षों के बराबर होता है।
पितृ लोक और यमराज का संबंध
यमराज को धर्मराज भी कहा जाता है। वे पितृ लोक के अधिपति हैं। मृत्यु के बाद आत्माओं का न्याय करना और उन्हें स्वर्ग, नर्क या पुनर्जन्म का मार्ग दिखाना यमराज का कार्य है। शास्त्रों में कहा गया है कि आत्मा पुनर्जन्म के लिए पितृ लोक से पृथ्वी पर आती है।
पितृ लोक और श्राद्ध का महत्व
पितृ लोक पूर्वजों के ऋण से जुड़ा है, जिसके लिए श्राद्ध और तर्पण जैसे कर्मकांड किए जाते हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार, जब हम पितृ पक्ष के दौरान तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं, तो यह सीधे पितरों तक पहुँचता है। समय का यह अंतर दर्शाता है कि पितरों की दृष्टि से, वर्ष में एक बार किया गया श्राद्ध उनके लिए निरंतर ताज़गी और संतुष्टि का स्रोत बनता है। जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है। ऐसा भी माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितृ लोक के द्वार खुल जाते हैं और पूर्वज अपने वंशजों से मिलने धरती पर आते हैं। इसीलिए इस दौरान श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व है। यह न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका भी है।
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Thu, Aug 28 , 2025, 09:33 PM