नैनीताल। उत्तराखंड में सरकारी नौकरी (government jobs) में 30 प्रतिशत महिला आरक्षण के मामले में उच्च न्यायालय अगले महीने 17 सितंबर को सुनवाई करेगा।
इस मामले को उत्तर प्रदेश के एक सेवानिवृत्त शिक्षक सत्यदेव त्यागी की ओर से एक जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता की ओर से उत्तराखंड सरकार द्वारा अधिनियमित उत्तराखंड लोक सेवा (Horizontal Reservation for Women) अधिनियम, 2022 को चुनौती दी गई है। साथ ही याचिकाकर्ता ने राज्य की लोक सेवाओं में उत्तराखंड महिला आरक्षण के 30 प्रतिशत के प्रावधान को भी चुनौती दी है।
इस मामले की सोमवार को सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर (Chief Justice G. Narender) और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय (Justice Subhash Upadhyay) की खंडपीठ में हुई। याचिकाकर्ता के वकील डॉ. कार्तिकेय हरि गुप्ता ने दलील दी कि उत्तराखंड विधानसभा इस अधिनियम को पारित करने के लिए सक्षम नहीं है। यह अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 16(3) के प्रावधानों के विरुद्ध है।
न्यायालय ने कहा कि निवास या अधिवास के आधार पर किसी भी रोजगार में आरक्षण केवल भारत की संसद द्वारा ही प्रदान किया जा सकता है, राज्य विधानमंडल द्वारा नहीं। इस प्रकार का आरक्षण प्रदान करना राज्य का संकीर्ण दृष्टिकोण है।
इस प्रकार क्षेत्र और अधिवास-आधारित आरक्षण राष्ट्र के लिए उचित नहीं है। यह भी कहा गया कि राज्य को महिलाओं के लिए आरक्षण प्रदान करने की अनुमति है लेकिन वह इसे उत्तराखंड की महिलाओं तक सीमित नहीं कर सकता। राज्य ने मनमाने ढंग से वर्ग के भीतर एक वर्ग बना दिया है जिसकी भारत के संविधान के अनुच्छेद 16(3) के तहत अनुमति नहीं है। राज्य की ओर से महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने तर्क दिया कि उत्तराखंड में महिलाएं बहुत कठिन परिस्थितियों में रहती हैं। इसलिए प्रदेश सरकार ने राज्य की महिलाओं के लिए सकारात्मक कदम उठाया है। खंडपीठ ने इस मामले पर सुनवाई के लिए 17 सितंबर की तिथि तय कर दी है।
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Mon, Aug 25 , 2025, 08:14 PM