लखनऊ/अयोध्या, 24 अगस्त (वार्ता)। अयोध्या (Ayodhya) राजघराने के बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र (Bimalendra Mohan Pratap Mishra) का शनिवार देर रात निधन (death) हो गया ।उन्हें राजा अयोध्या (ayodhya) के नाम से जाना जाता था। उन्होंने शनिवार देर रात अंतिम सांस ली। उनकी आयु लगभग 75 वर्ष थी।
बाबरी मस्जिद विवाद (Babri Mosque dispute) पर सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के फैसले के बाद संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi in Parliament) द्वारा की गई घोषणा के अनुसार गठित श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के वे पहले वरिष्ठ सदस्य थे, जिनका शनिवार रात 11 बजे अयोध्या धाम स्थित उनके राज सदन में आकस्मिक निधन हो गया।
उनके अंतिम दर्शन के लिए उनके करीबी लोग और प्रशासनिक अमला देर रात पहुंचा। उनके निधन से अयोध्या में शोक की लहर दौड़ गई।
उनके छोटे भाई और पूर्वांचल के सबसे बड़े महाविद्यालय साकेत महाविद्यालय की प्रबंध समिति के संरक्षक शैलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र चुन्नू ने मीडियाकर्मियों को बताया कि रात 11 बजे राजा अयोध्या का रक्तचाप अचानक कम हो गया।
परिवार के सदस्यों ने उन्हें इलेक्ट्रोलाइट और अन्य दवाइयाँ दीं। अयोध्या धाम के श्री राम अस्पताल से पारिवारिक चिकित्सक डॉ. बीडी त्रिपाठी को भी बुलाया गया। लेकिन तब तक उनकी मृत्यु हो गई।
राजा अयोध्या का कुछ दिन पहले रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन हुआ था और वे तीन दिन पहले लखनऊ में जाँच करवाकर लौटे थे। कुछ दिन पहले उनकी पत्नी का भी निधन हो गया था।
आज दोपहर सरयू नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार होने की उम्मीद है। उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी हैं।
पूरे अयोध्या में राजा साहब के नाम से प्रसिद्ध बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र को कुछ महीने पहले पैर में चोट लग गई थी। उनका ऑपरेशन भी हुआ था। इसके बाद उनकी गतिविधियाँ कुछ कम हो गई थीं।
राम मंदिर ट्रस्ट के वरिष्ठ सदस्य, बहुजन समाज पार्टी से अयोध्या लोकसभा क्षेत्र से चुनाव भी लड़ चुके हैं।
उनके पुत्र यतींद्र मोहन प्रताप मिश्र एक प्रसिद्ध संगीत विद्वान और कवि हैं। उन्होंने प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर (Singer Lata Mangeshkar) पर "लता सुर गाथा" नामक एक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी थी। इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था।
जब राम मंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम फैसला आया, तो बिमलेंद्र प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चुने गए पहले वरिष्ठ सदस्य थे। पहला कार्यभार उन्हें अयोध्या के कमिश्नर ने सौंपा था, जो उस समय तक श्री राम जन्मभूमि परिसर के रिसीवर थे। वे श्री प्रताप धर्म सेतु ट्रस्ट के अध्यक्ष भी थे।
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