Ashok Saraf on Hindi-Bhojpuri Industry: तीन दशकों से मराठी सिनेमा (Marathi Industry) और बॉलीवुड (Bollywood News) में दर्शकों के दिलों पर राज करने वाला नाम है कॉमेडी के बादशाह अशोक सराफ (Ashok Saraf)। महाराष्ट्र (Maharashtra News) के लाडले अशोक मामा को महाराष्ट्र भूषण और पद्मश्री पुरस्कारों (Maharashtra Bhushan and Padmashree awards) से सम्मानित किया गया। अशोक मामा ने एक के बाद एक अलग-अलग भूमिकाएँ निभाकर दर्शकों का मनोरंजन किया। कभी लक्ष्य के दोस्त बनकर शानदार कॉमेडी की, तो कभी सिल्वर स्क्रीन पर खलनायक का किरदार निभाया... अशोक सराफ ने अपने अनोखे अंदाज़ से दर्शकों का दिल जीत लिया। मराठी सिनेमा इंडस्ट्री पर एकछत्र राज करने वाला यह अभिनेता हिंदी में सिर्फ़ नौकर के रोल में ही नज़र आया, कभी हीरो बनने का मौका नहीं मिला... क्यों?
हालांकि, इस दिग्गज अभिनेता को हिंदी सिनेमा में हमेशा नौकर का ही रोल निभाना पड़ा। अशोक सराफ ही नहीं, मराठी दर्शकों के चहेते दिवंगत दिग्गज अभिनेता लक्ष्मीकांत बेर्डे (Laxmikant Berde) ने भी हिंदी सिनेमा में नौकर का किरदार निभाया था, तो ऐसा क्यों? मराठी में सुपरस्टार बनकर रुपहले पर्दे पर छाने वाले दिग्गज अभिनेता हिंदी सिनेमा के रुपहले पर्दे पर कभी हीरो बनकर क्यों नहीं दिखे? यह सवाल आप और हम सभी के मन में था। इसका जवाब अशोक सराफ ने हाल ही में एक इंटरव्यू में दिया है।
मराठी अभिनेताओं को हिंदी में नौकर का ही किरदार क्यों मिलता है? अशोक सराफ ने समझाया
एक यूट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में अशोक सराफ ने कहा, "मराठी लोगों की जो छवि है, वह हिंदी में फिट नहीं बैठती। उनकी नज़र में हीरो गोरी चमड़ी वाला होता है... कोई नहीं जानता कि वह क्या करता है और किसी को पता भी नहीं। हम खुद को उस नज़र से नहीं देखते। इसलिए हमें कभी हीरो का रोल नहीं मिलता। फिर हम कोई किरदार ढूँढ़ते हैं। मेरे या लक्ष्मीकांत जैसे चेहरे को नौकर का रोल मिल जाता है। इसके अलावा हमें कुछ नहीं मिलता। अब यह आपको तय करना है कि आप इसे करें या नहीं। अगर वे आपको अच्छा पैसा दे रहे हैं और आपको फायदा हो रहा है, तो कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन, लोग क्या कहते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे लिए वहाँ हीरो के तौर पर काम करना मुमकिन नहीं है। तो हम ज़िद क्यों करें।"
अशोक सराफ ने कहा, "अगर आपके पास समय है, तो काम कीजिए। मैंने हिंदी में तभी काम किया है जब मेरे पास समय होता है। एक भोजपुरी निर्माता आए। मैंने कभी भोजपुरी नहीं की। मेरा एक रोल था। मैंने उनसे कहा कि मेरे पास समय नहीं है। देखते हैं इन 15 दिनों में क्या होता है। उन्होंने कहा, हाँ, चलेगा। मैं उनकी भाषा बखूबी बोलता हूँ। एक बार उनका लहजा समझ लो, तो भोजपुरी बोल सकते हो। मुझे उस साल भोजपुरी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। मुझे वह पुरस्कार उस भाषा में मिला जो मेरी भाषा नहीं है।"
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Mon, Jul 21 , 2025, 03:32 PM