Guru Purnima 2025: 10 या 11 जुलाई कब है गुरु पूर्णिमा ? जानिए गुरु पूर्णिमा की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व 

Wed, Jul 09 , 2025, 02:52 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

Importance of Guru Purnima : गुरु पूर्णिमा का पर्व अपने गुरुओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने का पर्व है। हिन्दू धर्म (Hinduism) में गुरुओं का बहुत महत्व होता है। हम जो कुछ भी हैं, उसमें हमारे गुरुओं की बहुत बड़ी भूमिका होती है। भारतीय संस्कृति में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश (Brahma, Vishnu and Mahesh) के समान माना जाता है।


 'गुरुर्ब्रह्मा गुरुविष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात् परब्रह्मा, तस्मै श्रीगुरवे नमः।
यह श्लोक गुरु के महत्व पर प्रकाश डालता है। गुरु शिष्य को अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। हमारे जीवन में एक या कई गुरु हो सकते हैं। किसी भी व्यक्ति की आर्थिक, सामाजिक या करियर उन्नति के पीछे उस समाज और परिवेश के साथ गुरु का भी योगदान होता है

कब है गुरु पूर्णिमा ?
वर्ष 2025 में गुरु पूर्णिमा गुरुवार, 10 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास (month of Ashadha) की पूर्णिमा 10 जुलाई को प्रातः 1:36 बजे शुरू होगी और 11 जुलाई को प्रातः 2:06 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार, गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई को मनाई जाएगी।

धार्मिक महत्व: 
गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है। इस दिन गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। इस पर्व को 'व्यास पूर्णिमा' भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। महर्षि वेद व्यास को महाभारत, पुराणों और वेदों का रचयिता माना जाता है, इसलिए उन्हें भारतीय संस्कृति का शिल्पकार और संस्थापक माना जाता है।

क्यों मनाया जाता है गुरु पूर्णिमा?
कृतज्ञता व्यक्त करना:
यह दिन शिष्यों के लिए अपने गुरु के प्रति सम्मान, निष्ठा और कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए उन्हें धन्यवाद दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु तत्व (ईश्वरीय सिद्धांत) सामान्य से हजारों गुना अधिक सक्रिय होता है।

इसलिए इस दिन की गई सेवा और साधना अधिक फलदायी होती है। इस दिन महर्षि वेदव्यास की विशेष पूजा की जाती है, क्योंकि गुरु परंपरा में उन्हें सबसे महान गुरु माना जाता है। मान्यता है कि समस्त ज्ञान उन्हीं से उत्पन्न होता है।

गुरु-शिष्य परंपरा: गुरु पूर्णिमा गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है, जो भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। पूर्वकाल में गुरुकुल पद्धति में शिष्य गुरु के आश्रम में रहकर ज्ञान प्राप्त करते थे और गुरु पूर्णिमा पर गुरु दक्षिणा देकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते थे।

मान्यता है कि इस दिन गुरु का आशीर्वाद लेने से आध्यात्मिक उन्नति होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। इस दिन गुरु की पूजा करके उन्हें वस्त्र, पुष्प, फल और दक्षिणा अर्पित करके आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। जिन लोगों का कोई प्रत्यक्ष गुरु नहीं होता, वे ईश्वर या अपने माता-पिता को गुरु मानकर उनकी पूजा करते हैं।

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