मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के पक्ष में भाजपा नेता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की!

Tue, Jul 08 , 2025, 07:19 PM

Source : Uni India

नयी दिल्ली। चुनाव आयोग के बिहार की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण करने के फैसले के खिलाफ कांग्रेस तथा अन्य प्रमुख विपक्षी दल के नेताओं और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में दायर याचिकाओं के विपरीत भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय (Ashwini Kumar Upadhyay) ने एक याचिका दायर की है।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची की अंशकालीन कार्य दिवस पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता अधिवक्ता उपाध्याय ने इस मामले का मंगलवार को 'विशेष उल्लेख' के दौरान जिक्र किया और अन्य याचिकाओं (चुनौती देने वाली) के साथ 10 जुलाई को सुनवाई की गुहार लगाई। इस पर पीठ ने उनसे कहा कि वह अपनी याचिका में खामियों को दूर कर उसे (10 जुलाई को सुनवाई के लिए) सूचीबद्ध करने का अनुरोध रजिस्ट्री (शीर्ष अदालत की) कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के अनुरोध पर कहा था कि वह बिहार की मतदाता सूची से संबंधित आयोग के 24 जून 2025 के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 जुलाई को विचार करेगी। उन्होंने चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ओर से शीर्ष अदालत के समक्ष अनुरोध किया था।

अधिवक्ता उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में देशभर में एक नियमित अंतराल मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण करने का निर्देश चुनाव आयोग को देने की गुहार लगाई है। अपनी याचिका में उन्होंने खास तौर पर संसदीय, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों से पहले विशेष गहन पुनरीक्षण कराने की मांग की है। उन्होंने (उपाध्याय) अपनी याचिका में कहा है कि स्वतंत्रता के बाद देश में बड़े पैमाने पर अवैध घुसपैठ, छलपूर्ण धर्म परिवर्तन और बेलगाम जनसंख्या वृद्धि के कारण 200 जिलों और 1500 तहसीलों की जनसांख्यिकी बदल गई है। ऐसे में केंद्र, राज्य सरकारों और भारत के चुनाव आयोग का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि संसदीय, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में केवल वास्तविक नागरिक ही अपना वोट डालें, न कि विदेशी। इसके लिए समय-समय पर मतदाता सूचियों की विशेष गहन जांच आवश्यक है।

उनका कहना है कि याचिका दायर करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित किया जाना है कि राजनीति और नीति केवल भारतीय नागरिक ही तय करें, न कि अवैध विदेशी घुसपैठिए। उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा, “जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 14(1) मतदाता सूचियों के वार्षिक सारांश संशोधन को अनिवार्य बनाती है। मतदाता सूचियों का विशेष गहन संशोधन धारा 21(3) के तहत एक असाधारण अभ्यास है, जो सामान्य चक्र अपर्याप्त होने पर गंभीर अनियमितताओं को दूर करता है।” याचिका में यह भी कहा गया है कि जीत के अंतर के साथ अक्सर कुछ सौ वोटों के भीतर, अवैध मतदाता निर्णायक रूप से चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। इसमें कहा गया है कि मतदाता सूचियों का विशेष गहन जांच धोखाधड़ी को रोकता है और मतदाताओं के जनादेश की रक्षा करता है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि घुसपैठ ने न केवल देश के सीमावर्ती क्षेत्रों, बल्कि पूरे देश में जनसांख्यिकीय असंतुलन को बाधित किया है। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि बिहार में 243 विधानसभा क्षेत्र हैं‌ और हर क्षेत्र में अनुमानित 8,000-10,000 अवैध और फर्जी प्रविष्टियाँ हैं। ऐसे में 2,000-3,000 वोटों की मामूली विसंगतियाँ भी चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए, चुनाव आयोग की शक्तियों के तहत आदेशित एक विशेष गहन संशोधन का उद्देश्य मतदाता सूचियों को सुनाना है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो चुनावों की अखंडता और संविधान में निहित मौलिक अधिकार खतरे में पड़ जाएँगे, ऐसा दलील दी गई।

याचिका में कहा गया है, “यह बहुत आश्चर्यजनक है कि शीर्ष अदालत के समक्ष विभिन्न याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325, 326 तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के प्रावधानों के उल्लंघन के आधार पर चुनाव आयोग के 24 जून, 2025 के आदेश को रद्द करने या निरस्त करने की गुहार लगाई गई है।” गौरतलब है कि इससे पहले (विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा) चुनाव आयोग के 24 जून, 2025 को जारी उक्त आदेश को अव्यावहारिक और मनमाना बताते हुए इसे रद्द करने की मांग शीर्ष अदालत से की गई।

ये मांग करते हुए कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, राष्ट्रीय जनता दल सांसद मनोज कुमार झा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सांसद सुप्रिया सुले, सीपीआई के महासचिव डी राजा, शिवसेना (यूबीटी) के अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसद सरफराज अहमद और सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य ने याचिका दायर की थी। इसी प्रकार गैर सरकारी संगठनों - एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, पीयूसीएल और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव समेत अन्य ने इस संबंध में चुनाव आयोग के फैसले की वैधता को शीर्ष अदालत में चुनौती देते हुए अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं। चुनाव आयोग के उक्त आदेश के खिलाफ याचिका दायर करने वालों ने दावा किया कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21 ए के प्रावधानों का उल्लंघन है। उन्होंने तर्क दिया कि यदि इस आदेश को रद्द नहीं किया गया तो मनमाने ढंग से और उचित प्रक्रिया के बिना लाखों मतदाताओं को अपने प्रतिनिधियों को चुनने से वंचित किया जा सकता है। इससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र बाधित हो सकता है, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं।

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