नयी दिल्ली। कांग्रेस तथा इंडिया समूह के 11 दलों के नेताओं ने बुधवार को चुनाव आयोग से मुलाकात की और कहा कि जो काम कई महीने पहले शुरु हो जाना चाहिए था उसे आखिर किस वजह से आयोग ने चुनाव से महज दो तीन महीने पहले शुरु किया है। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) ने बुधवार को आयोग से मुलाकात के बाद यहां पत्रकारों से कहा कि आयोग से इंडिया समूह के 11 दलों के 18 नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की और करीब तीन घंटे तक विभिन्न मुद्दों पर व्यापक चर्चा की।
उन्होंने कहा कि मुलाकात से पहले यह कहते हुए प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया गया कि राजनीतिक दलों के अध्यक्ष ही आयोग से मिल सकते हैं। विपक्षी दलों के नेताओं ने इस मुद्दे को आयोग से मुलाकात के समय उनके समक्ष भी उठाया और कहा कि प्रतिबंध अनुचित है। इसकी वजह से कई नेता बाहर हैं। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले आयोग से मिलने गये प्रतिनिधि मंडल में कांग्रेस नेता श्री सिंघवी ने कहा कि पिछले 22 साल से बिहार में चार-पांच चुनाव हो चुके हैं लेकिन व्यापक मतदाता पुनरीक्षण का काम पहली बार हो रहा है। इस काम को जनवरी के बाद से ही किया जा सकता था लेकिन आयोग ने अब यह निर्णय लिया है और यह अनुचित है।
पुनरीक्षण का काम इस तरह से जल्दबाजी में होना ठीक नहीं है। इस काम के लिए आधार तथा वोटर कार्ड के साथ ही जन्म प्रमाण पत्र की शर्त भी रखी गई है और अगर शर्त पूरी नहीं होती है तो मतदान के लिए मतदाता पात्र नहीं होगा। यह अनुचित है क्योंकि गरीबों को इस काम के लिए अगले दो माह तक दस्तावेज जुटाने पड़ेगे और समान अवसर का हनन है। इस तरह के काम पर समय निकालना अनावश्यक है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि आयोग जो काम अब कर रहा है इसकी पहले घोषणा नहीं की गई है। इस काम को शुरु करने से पहले ग्राम स्तर के अधिकारी-बीएलओ को प्रशिक्षित नहीं किया गया और राजनीतिक दलों के नेताओं को शामिल नहीं किया गया है। दो माह में आठ करोड़ मतदाताओं का पुनरीक्षण का दुरुह काम है। इस तरह से लोगों को मत देने से वंचित करना उनके साथ न्याय नहीं है।
राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा ने कहा कि यह बैठक सौहार्दपूर्ण नहीं कही जा सकती है। इस बैठक में बिहार के गरीबों की चिंता को रखा गया और आयोग बताया गया कि आयोग का यह काम लोगों को मतदान से बेदखल करने का प्रयास है। उनका कहना था कि जो काम 22 साल में नहीं हुआ उसे अब क्यों किया जा रहा है इसका आयोग ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। मतदान पात्रता के लिए जो शर्तें रखी गई हैं वे गरीब व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। आयोग का यह काम लाखों करोड़ों लोगों को मतदान से बाहर करने का प्रयास है और इसके खिलाफ सड़कों पर उतरा जाएगा।
सीपीआई(एमएल) के दीपंकर भट्टाचार्य (Dipankar Bhattacharya)ने कहा कि आयोग से हुई लंबी वार्ता के बाद आशंकाएं बढ़ गई है क्योंकि आयोग ने किसी भी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दिया है। इस तरह से बिहार से पलायन करने वाले मतदान नहीं कर सकेंगे और यह संख्या बहुत बड़ी है। बिहार के लोगों के लिए आयोग की यह घोषणा वोट बंदी की है और चुनाव आयोग को यह समझाने में वे विफल रहे हैं कि दो माह में आठ करोड़ लोगों को मतदाता सूची में आने के लिए आवश्यक दस्तावेज जुटाने कठिन हो जाएंगे और इससे लाखों करोड़ों लोग मतदान से बाहर हो जाएंगे। यह लोकतंत्र के लिए बहुत खतरा पैदा हो गया है जबकि मतदाता को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने कहा कि आयोग के इस फैसले से दीहाड़ी मजदूरों को वोट देने से वंचित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उत्तरी बिहार के 60-70 फीसदी लोग बाढ से प्रभावित होते हैं और बड़ी संख्या में लोग सुरक्षित स्थानों पर चले जाते हैं इस स्थिति में उन लोगों के लिए मतदान का अधिकारी बनना कठिन हो जाएगा क्योंकि वे दस्तावेज आयोग की शर्तों के अनुसार नहीं जुटा पाएंगे।
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Wed, Jul 02 , 2025, 09:42 PM