Series of natural disasters : प्राकृतिक आपदाओं ने हिमाचल प्रदेश में जनजीवन को ठप्प कर दिया है। भूस्खलन (Landslide) से कई सड़कें अवरुद्ध हो गई हैं। बादल फटने और बाढ़ के कारण देशभर से आए पर्यटक यहां फंसे हुए हैं। महाराष्ट्र के 600 पर्यटक भी यहां फंसे हुए हैं। पिछली सदी में हिमाचल प्रदेश के औसत तापमान में 1.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। उसके बाद यहां का वातावरण बदल गया है। प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और तीव्रता में वृद्धि हो रही है।
मुख्य समस्या और कारण
हिमाचल में भारी वर्षा और बादल फटना: तापमान बढ़ने के कारण वातावरण में अधिक नमी पैदा हो गई है। इसके कारण अचानक भारी वर्षा हो रही है। इसके कारण अचानक बाढ़ और भूस्खलन बढ़ गए हैं।
भूस्खलन और भूस्खलन: पहाड़ों को काटने और सड़कें बनाने के कारण पहाड़ों की स्थिरता बाधित हुई है। इसके अलावा, भारी वर्षा के कारण यहां भूस्खलन की संख्या में वृद्धि हुई है।
मानवीय कारण: सड़कें, सुरंगें, नदी किनारे की संरचनाएँ, जलविद्युत परियोजनाओं ने पहाड़ों में असंतुलन को बढ़ाया है।
प्रभावित क्षेत्र
हिमाचल प्रदेश का लगभग 45 प्रतिशत भूस्खलन, बाढ़ और हिमस्खलन के उच्च जोखिम में है। इसलिए, यदि तत्काल उपाय नहीं किए गए, तो वर्ष 2100 तक औसत तापमान में अतिरिक्त 3-5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। पर्यावरण विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की है कि प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता और बढ़ेगी।
क्या हैं समाधान?
1. विकास कार्य
पहाड़ों पर खुदाई और निर्माण पर सख्त नियंत्रण।
नदी के किनारे से 5-7 मीटर और नदी से 25 मीटर की दूरी पर निर्माण किया जाना चाहिए।
मिट्टी की जांच और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग का उपयोग अनिवार्य करें।
2. प्रकृति संरक्षण
मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए पहाड़ों में वन संरक्षण, वनरोपण और वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करें।
भूमि पर जलविद्युत परियोजनाओं और सुरंगों के प्रभाव का अध्ययन करें।
3. जागरूकता और विनियमन
भवन और पर्यावरण नियमों के अनुपालन को लागू करें।
बिजली और पानी के कनेक्शन बिना अनुमति के उपलब्ध नहीं होने चाहिए।
मानव-केंद्रित विकास (जैसे पर्यटन, बस यात्रा) को नियंत्रित करें।
4. स्थानीय भागीदारी
पहाड़ों में रहने वाले लोगों की समस्याओं को सुनें और उनके सुझावों के आधार पर योजनाएँ बनाएँ।
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Tue, Jul 01 , 2025, 09:33 PM