लोकतंत्र की आत्मा है संसद! देवनानी ने कहा कि संसद और विधान सभाएं जन आस्था, उत्तरदायित्व और लोकतांत्रिक चेतना के जीवंत प्रतीक हैं 

Mon, Jun 30 , 2025, 12:11 PM

Source : Uni India

जयपुर: राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी (Rajasthan Assembly Speaker Vasudev Devnani) ने संसद को लोकतंत्र की आत्मा एवं जनविश्वास ही इसकी सबसे बडी पूंजी बताते हुए कहा है कि संसद और विधान सभाएं केवल विधायी मंच नहीं बल्कि जन आस्था, उत्तरदायित्व और लोकतांत्रिक चेतना के जीवंत प्रतीक है। देवनानी सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय संसद दिवस के अवसर पर देश-विदेश के समस्त सांसदों, विधायकों एवं जनप्रतिनिधियों को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि यह दिन हमें स्मरण कराता है कि जनप्रतिनिधित्व केवल अधिकार नहीं बल्कि कर्तव्य, सेवा और संवेदनशीलता का दायित्व है।

उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2018 में 30 जून को अंतर्राष्ट्रीय संसद दिवस के रूप में मान्यता दी गई। यह तिथि इंटर पार्लियामेन्ट यूनियन की स्थापना की स्मृति में निर्धारित की गई जो कि विश्व की संसदों का प्रतिनिधि संगठन है और लोकतांत्रिक मूल्यों, संवाद और विधायी सशक्तिकरण के लिए कार्य करता है। उन्होंने कहा कि संसदीय गरिमा, संवाद की शुचिता, सदन में आचरण की मर्यादा और जनहित की सर्वोच्च प्राथमिकता ये मूल्य जितना हम निभाएंगे, लोकतंत्र उतना ही गहरा और स्थायी होगा।

 देवनानी ने कहा कि जब संसद सजग होती है तो समाज सशक्त होता है। जब संवाद सशक्त होता है, तब राष्ट्र विकसित होता है। उन्होंने कहा कि आज का दिन हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि क्या हम अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा को उतनी ही निष्ठा से निभा रहे हैं, जितनी अपेक्षा हमारे संविधान और नागरिकों को हमसे है। देवनानी ने बताया कि राजस्थान विधानसभा ने ई-विधान प्रणाली, सदस्यों के प्रशिक्षण सत्र, प्रश्नकाल की प्रभावशीलता, और नागरिक सहभागिता जैसे कई अभिनव प्रयासों के माध्यम से विधायी कार्यों को अधिक पारदर्शी, डिजिटल और उत्तरदायी बनाया है। 

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में नवीन तकनीक और पारंपरिक मूल्यों के संतुलन से ही 21वीं सदी का आदर्श विधायन तंत्र स्थापित हो सकता है। उन्होंने सभी जनप्रतिनिधियों से यह आह्वान किया कि वे जनआकांक्षाओं की सही आवाज बने, दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सदन में सार्थक और सकारात्मक विमर्श करें और जनसेवा के संकल्प को जीवन का ध्येय बनाएं। देवनानी ने कहा कि आज का दिन केवल उत्सव नहीं, आत्मचिंतन का अवसर है ताकि हम विधायी गरिमा, लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व और जनसंपर्क की मर्यादा को सशक्त कर सकें |

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