Rozi Roti Adhikar Abhiyan: रोज़ी रोटी अधिकार अभियान के आठवें राष्ट्रीय सम्मेलन का आगाज़!

Sun, May 25 , 2025, 09:15 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

जयपुर: रोज़ी रोटी अधिकार अभियान (Rozi Roti Adhikar Abhiyan) का आठवां तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन शनिवार को राजस्थान की राजधानी जयपुर में 'रोज़ी रोटी का हक हमारा, लोकतंत्र मजबूत हमारा' संदेश के साथ प्रारंभ हुआ। डा अंबेडकर मेमोरियल वेलफेयर सोसायटी के प्रांगण में प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय, कवीता श्रीवास्तव, आयशा, गंगा भाई आदि ने देशभर से आए विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं के बीच संविधान की उद्देशिका का वाचन कर सम्मेलन का आगाज़ किया। इसके बाद आयोजित उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए अरुणा रॉय ने कहा कि जनता को मिलने वाला भोजन तथा अन्य सुविधाएं फ्रीबीज़ नहीं हैं, यह हर नागरिक का अधिकार है जो संविधान ने दिया है। भोजन का अधिकार मूलभूत जरूरत है।

उन्होंने कहा कि हंगर इंडेक्स में भारत का 105वें स्थान पर होना शर्मनाक है। उन्होंने वर्तमान समय को देखते हुए खाद्य सुरक्षा कानून के तहत मिलने वाली खाद्य सामग्री की मात्रा बढ़ाए जाने एवं इसमें सभी प्रकार के अनाजों को शामिल करने की बात कही। सम्मेलन संयोजक कविता श्रीवास्तव ने अभियान की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्ष 2000 में राजस्थान में गठित अकाल संघर्ष समिति से रोज़ी रोटी अधिकार अभियान की नींव पड़ी जिसमें बाद में कई संगठन एवं सामाजिक कार्यकर्ता जुड़े। इस अवसर पर अभियान से जुड़े रहे देश एवं राज्य के दिवंगत कार्यकर्ताओं को भी याद किया गया।

तीन दिवसीय इस सम्मेलन में संयुक्त किसान मोर्चा पंजाब के प्रतिनिधि हरिंदर बिंदु, महाराष्ट्र के जनआन्दोलन के नेतृत्व उल्का महाजन, एनसीपीसीआरआई की कन्वीनर अंजलि भारद्वाज, स्कॉलर नवशरण सिंह, ज्यॉ द्रेज़ जैसे शोधकर्ता, सैयदा हमीद, निखिल डे, हर्ष मंदर, शोधकर्ता दीपा सिन्हा, साहू पटोले (खाद्य संस्कृति लेखक) सहित विभिन्न संगठनों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता एवं विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं।

सम्मेलन के दौरान उल्का महाजन व कोमल श्रीवास्तव के संयोजन में आयोजित पैनल में ओडिशा के एंटी माइनिंग आंदोलन के नेता लिंगराज आजाद ने कहा कि केवल भोजन नहीं बल्कि पोषण जरूरी है जिसकी ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। जेएनयू छात्रसंघ महासचिव मुन्तेहा फातिमा ने कहा कि भोजन का अधिकार कोई चैरिटी नहीं है, यह नागरिक का अधिकार है जिसे कई प्रकार से खारिज करने की कोशिशें की जा रही हैं। लेखिका एवं शोधकर्ता रीतिका खेड़ा ने गर्भवती महिलाओं को दिए जाने वाले छह हजार रुपए की प्रक्रिया, सामाजिक सुरक्षा पेंशन आदि पर विचार रखे। 

'​दलित किचन्स' किताब के लेखक साहू पटोले ने जाति प्रथा और दलितों की खाद्य संस्कृति के विविध पहलुओं पर बात की। मजदूर किसान शक्ति संगठन के मुकेश निर्वासित ने कहा कि एक ओर हम अंतरिक्ष में जाने की बात करते हैं, दूसरी ओर लोगों को भोजन तक नहीं मिलता। सतर्क नागरिक संगठन की अमृता जोहरी ने आरटीआई संशोधन वापस लेने की मांग की। दीपा सिंह ने कहा कि सामाजिक कार्यकर्ताओं की सक्रियता से ही विभिन्न जनहितकारी कानून लागू हुए हैं इसलिए सबको सक्रिय रहने की आवश्यकता है।

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