Suicide cases: सुप्रीम कोर्ट का राजस्थान सरकार से सवाल, कोटा में ही क्यों आत्महत्या कर रहे हैं विद्यार्थी!

Fri, May 23 , 2025, 10:25 PM

Source : Uni India

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कोटा में विद्यार्थियों के बढ़ते आत्महत्या मामले (Suicide cases) में शुक्रवार को चिंता व्यक्त किया और राजस्थान सरकार से पूछा कि वह इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए क्या कर रही है। न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने राज्य सरकार से सवाल किया कि आखिर बच्चे केवल कोटा में ही आत्महत्या क्यों कर रहे हैं। पीठ ने राज्य सरकार के अधिवक्ता से पूछा, “आप एक सरकार के तौर पर क्या कर रहे हैं? ये बच्चे आत्महत्या क्यों कर रहे हैं और केवल कोटा में ही? क्या आपने एक राज्य के नाते इसके बारे में नहीं सोचा?”

इस पर अधिवक्ता ने तर्क दिया कि आत्महत्या के मामलों की जांच के लिए राज्य में विशेष जांच दल (Special Investigation Team) का गठन किया गया था और कोटा मामले में जांच जारी है। पीठ ने कोटा आत्महत्या मामले में मुकदमा दर्ज न किए जाने पर असंतोष व्यक्त किया और राज्य के वकील से पूछा, “कोटा में अब तक कितने युवा छात्रों की मौत हुई है?”

अधिवक्ता ने जवाब दिया कि 14 मामले सामने आए हैं। पीठ ने राजस्थान सरकार के वकील से पूछा, “ये छात्र क्यों मर रहे हैं?...आप हमारे फैसले की अवमानना ​​कर रहे हैं। आपने मुकदमा क्यों दर्ज नहीं की?” हाल के वर्षों में कोटा मेडिकल प्रवेश परीक्षा (नीट) और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग सेंटर का केंद्र बन गया है।

शीर्ष अदालत ने अपने पहले के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि मुकदमा दर्ज करना और जांच करना संबंधित क्षेत्र की पुलिस का कर्तव्य है। पीठ ने कहा, “संबंधित क्षेत्रीय पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी अपने कर्तव्य में विफल रहे हैं। उन्होंने इस अदालत द्वारा जारी निर्देशों का पालन नहीं किया है।”

अदालत ने कोटा मामले में पुलिस अधिकारी को 14 जुलाई को तलब किया। पीठ नीट की तैयारी करने वाली एक लड़की के मौत के मामले में मामले की सुनवाई करते हुए सरकार से ये सवाल पूछे। लड़की कोटा में अपने कमरे में मृत पाई गई थी। लड़की अपने माता-पिता के साथ रहती थी।

पीठ ने खड़गपुर के आईआईटी में पढ़ने वाले 22 वर्षीय छात्र की मौत के संबंध में ( जो 04 मई को छात्रावास के कमरे में मृत पाया गया था) मुकदमा दर्ज करने में चार दिन की देरी पर सवाल उठाया। मुकदमा 08 मई को दर्ज किया गया था। पीठ ने अदालत में मौजूद संबंधित पुलिस अधिकारी से पूछा, “आपको मुकदमा दर्ज करने में चार दिन क्यों लगे?” पीठ ने जोर देकर कहा कि ये गंभीर मामले हैं और संबंधित अधिकारियों को इन्हें हल्के में नहीं लेना चाहिए।

अदालत ने 24 मार्च, 2025 को दिए गए एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों की आत्महत्या के बार-बार होने वाले मामलों पर गौर किया गया था। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के उद्देश्य से अदालत ने छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया था।

खड़गपुर की घटना में पीठ को सूचित किया गया कि मामले की जांच चल रही है। पीठ ने हालांकि कहा कि वह पुलिस अधिकारी और आईआईटी खड़गपुर के अधिकारियों द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं है। अदालत ने कहा कि जांच सही दिशा में तेजी से की जानी चाहिए। पीठ ने कहा, “हम इस मामले पर बहुत सख्त रुख अपना सकते थे। हम संबंधित क्षेत्र के थाना प्रभारी के खिलाफ अवमानना ​​का मुकदमा भी चला सकते थे।”

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