पुणे। प्रख्यात खगोल वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर (Dr. Jayant Vishnu Narlikar) का मंगलवार को यहां उनके आवास पर दिल का दौरा पड़ने से निधन (Dr. Jayant Vishnu Narlikar died) हो गया। वह 86 वर्ष के थे। पारिवारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी। डॉ.नार्लीकर का जन्म महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 19 जुलाई,1938 में हुआ था। उनके पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकर सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं बनारस विश्वविद्यालय के गणित विभाग के प्रमुख थे। उनकी मां सुमति संस्कृत की विद्वान थीं। वाराणसी में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद डॉ. नार्लीकर ने विज्ञान में डिग्री हासिल की और फिर उच्च शिक्षा (higher education) के लिए ब्रिटेन के कैम्ब्रिज चले गए। उन्होंने कैम्ब्रिज से पीएचडी की डिग्री (PhD degree from Cambridge) हासिल की।
उन्हें रैंगलर डिग्री, खगोल विज्ञान में टायसन मेडल, स्मिथ पुरस्कार समेत कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया। डाॅ.नार्लीकर ने सर फ्रेड हॉयल के साथ मिलकर ‘कॉन्फ़ॉर्मल ग्रेविटी थ्योरी’ का प्रस्ताव देकर दुनिया भर के वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। खगोल भौतिकी के क्षेत्र में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें भारत के दूसरे और तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था।
डॉ.नार्लीकर ने न केवल एक विज्ञान शोधकर्ता के रूप में योगदान दिया, बल्कि अपने लेखन के माध्यम से विज्ञान का प्रसार भी किया। उनकी कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिक पुस्तकें ‘अंतरालतिल भस्मासुर’, अंतराल और विज्ञान, आकाशवाणी जादले नटे और सूर्याचा प्रपोक हैं। उनकी मराठी आत्मकथा ‘चार नगरांतेले माजे विश्व’ ने दिल्ली साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता। उन्हें अपनी पुस्तक ‘देनागी’ के लिए महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार, अमेरिकन फाउंडेशन से साहित्य में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाजा गया और फी फाउंडेशन, इचलकरंजी की ओर से राष्ट्र भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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