Health Tips: दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी हीमोफीलिया ने कोल्हापुर शहर और आसपास के क्षेत्रों में कई परिवारों के लिए कठिनाई ला दी है। यह रक्त से संबंधित बीमारी है जिसमें रक्त का थक्का बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है। इससे मरीजों को लगातार रक्तस्राव का खतरा बना रहता है। रक्तस्राव को रोकना कठिन हो सकता है, विशेष रूप से मामूली चोटों या सर्जरी के दौरान, जिससे गंभीर जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। कोल्हापुर में चिकित्सा विशेषज्ञों और रोगी संगठनों (Experts and patient organizations) ने इस बीमारी के बारे में जागरूकता और उपचार सुविधाएं बढ़ाने की आवश्यकता जताई है। डॉ. हीमोफीलिया के लक्षण, कारण और उपलब्ध उपचार पर चर्चा करते हैं। अविनाश शिंदे (Avinash Shinde) ने जानकारी दी है।
हीमोफीलिया क्या है?
हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रोग है, जो मुख्य रूप से रक्त का थक्का जमाने के लिए आवश्यक प्रोटीन (थक्के बनाने वाले कारक) की कमी के कारण होता है। यह रोग आमतौर पर पुरुषों में पाया जाता है, जबकि महिलाएं इस रोग की वाहक होती हैं। कोल्हापुर के विशेषज्ञों के अनुसार, यह रोग दो प्रमुख प्रकारों में विभाजित है: हीमोफीलिया ए (factor VIII deficiency) और हीमोफीलिया बी (factor IX deficiency)। वैश्विक आँकड़ों के अनुसार, हर 5,000 बच्चों में से एक इस बीमारी से पीड़ित है।
कोल्हापुर की स्थिति
स्थानीय अस्पतालों और हीमोफीलिया सोसायटी ने पाया है कि कोल्हापुर जिले में हीमोफीलिया रोगियों की संख्या बढ़ रही है। शहर के प्रमुख अस्पतालों में हर साल सौ से अधिक मरीज इलाज के लिए आते हैं। इनमें से कई रोगियों को मामूली चोटों से होने वाले रक्तस्राव को रोकने के लिए तत्काल चिकित्सा हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। स्थानीय रक्त बैंकों में थक्का बनाने वाले कारकों की सीमित आपूर्ति के कारण मरीजों को इलाज के लिए पुणे या मुंबई जैसे बड़े शहरों में जाना पड़ता है। इससे आर्थिक और मानसिक तनाव बढ़ रहा है। कोल्हापुर जिले में लगभग 525 हीमोफीलिया रोगी, 8 कारखानों में 350 रोगी, 9 कारखानों में 100 रोगी तथा अन्य कारखानों में 75 रोगी (rare bleeding disorder) सीपीआर में उपचाराधीन हैं। पिछले वर्ष 12 मरीजों की सर्जरी हुई है।
हीमोफीलिया के लक्षण
हीमोफीलिया के लक्षण रोगी की आयु और रोग की गंभीरता के आधार पर भिन्न होते हैं। प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं:
* नाक या मसूड़ों से बार-बार खून आना: मामूली चोट लगने पर भी खून का रुकना नहीं।
* आंतरिक रक्तस्राव: घुटनों, एड़ियों और कोहनी जैसे जोड़ों में रक्तस्राव, जिससे सूजन और दर्द होता है।
* त्वचा पर आसानी से चोट लग जाना: हल्की चोट लगने पर गहरे नीले रंग के निशान या खून के धब्बे।
* तेज सिरदर्द और उल्टी: मस्तिष्क में रक्तस्राव की संभावना।
* चिड़चिड़ापन और थकान: रक्तस्राव के कारण रोगी कमजोर हो जाता है।
ये लक्षण रोगी के दैनिक जीवन को प्रभावित करते हैं, विशेष रूप से शारीरिक गतिविधि और कार्यप्रणाली को सीमित करते हैं।
उपचार के तरीके
* थक्का बनाने वाले कारक प्रतिस्थापन चिकित्सा: रक्त में कमी वाले कारक VIII या IX को इंजेक्शन द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। यह चिकित्सा रक्तस्राव रोकने में प्रभावी है, लेकिन महंगी है।
* डेस्मोप्रेसिन (डीडीएवीपी): हल्के हीमोफीलिया ए के लिए यह दवा शरीर में फैक्टर VIII की मात्रा बढ़ाती है।
* जीन थेरेपी: जीन थेरेपी के माध्यम से हीमोफीलिया के इलाज के लिए हाल ही में अनुसंधान चल रहा है। इसमें दोषपूर्ण जीन को ठीक किया जाता है, जिससे शरीर को स्वयं थक्के बनाने वाले कारक बनाने की सुविधा मिलती है।
* निवारक उपचार: रक्तस्राव को रोकने के लिए थक्के बनाने वाले कारकों का नियमित प्रशासन। इससे जोड़ों और अंगों को होने वाली क्षति को रोका जा सकता है।
* होम्योपैथी और पूरक चिकित्सा: कुछ रोगी होम्योपैथी का सहारा लेते हैं, लेकिन इस संबंध में चिकित्सा विशेषज्ञ से परामर्श लेना आवश्यक है।
रोकथाम और जागरूकता
चूंकि हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रोग है, इसलिए इसे पूरी तरह से रोकना मुश्किल है। हालाँकि, मरीजों और उनके परिवारों को निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए:
* आनुवंशिक परीक्षण: विवाह या गर्भधारण से पहले आनुवंशिक परामर्शदाता की मदद लें।
* सुरक्षित जीवनशैली: ऐसे कठिन खेल या गतिविधियों से बचें जिनसे चोट लग सकती है।
* नियमित जांच: जैसे ही आपको रक्तस्राव के कोई लक्षण दिखाई दें, तुरंत चिकित्सा सहायता लें।
कोल्हापुर प्रशासन और चिकित्सा समुदाय ने हीमोफीलिया रोगियों के लिए विशेष उपचार केन्द्रों और रक्त बैंकों को बेहतर बनाने का वादा किया है। इसके अलावा, मरीजों को मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के लिए परामर्श केंद्र शुरू करने की भी योजना है। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि समय पर निदान और उचित उपचार से हीमोफीलिया के रोगी सामान्य जीवन जी सकते हैं।
कोल्हापुर में हीमोफीलिया कई परिवारों के लिए एक चुनौती है, लेकिन जागरूकता, चिकित्सा सुविधाओं और सामाजिक समर्थन से इस पर काबू पाया जा सकता है। स्थानीय डॉक्टरों ने मरीजों और उनके परिजनों से धैर्य बनाए रखने तथा चिकित्सा विशेषज्ञों से सलाह लेने की अपील की है।
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