Judge corruption case  :लोकपाल ने सुप्रीम कोर्ट से मार्गदर्शन मांगा, गुरुवार को सुनवाई!

Wed, Feb 19 , 2025, 09:54 PM

Source : Uni India

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) एक उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश और एक अतिरिक्त न्यायाधीश के खिलाफ दायर भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच के लिए लोकपाल की ओर से भारत के मुख्य न्यायाधीश से मार्गदर्शन मांगने के स्वतः संज्ञान मामले पर गुरुवार को विचार करेगा।

न्यायमूर्ति बी आर गवई, सूर्य कांत (Surya Kant) और अभय एस ओका की विशेष पीठ गुरुवार को दर्ज स्वतः संज्ञान मामले पर विचार करेगी। शीर्ष अदालत ने लोकपाल द्वारा पारित एक आदेश पर स्वतः संज्ञान लेते हुए यह कार्यवाही शुरू की है, जिसमें कहा गया है कि वह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच कर सकता है।

लोकपाल ने 27 जनवरी, 2025 को एक उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश और एक अतिरिक्त न्यायाधीश के खिलाफ दायर शिकायतों की जांच के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश से मार्गदर्शन मांगा था। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली लोकपाल पीठ ने के वीरास्वामी मामले (1991) में संविधान पीठ के आदेश के अनुसार शिकायतों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश से मार्गदर्शन मांगा, जिसमें कहा गया था कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ कोई आपराधिक मामला तब तक दर्ज नहीं किया जा सकता जब तक कि मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श न किया जाए।
भ्रष्टाचार निरोधक इस संस्था ने तब माना था कि भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश उसके अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।

हालांकि, इससे पहले तीन जनवरी, 2025 को उसने माना था कि शीर्ष अदालत के न्यायाधीश और भारत के मुख्य न्यायाधीश उसके अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आते हैं, क्योंकि वे लोक सेवकों की परिभाषा के दायरे में नहीं आते हैं। सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना संविधान द्वारा की गई है, संसद के अधिनियम द्वारा नहीं। इस मामले में एक ही शिकायतकर्ता द्वारा उच्च न्यायालय के एक वर्तमान अतिरिक्त न्यायाधीश के विरुद्ध दो शिकायतें दर्ज की गई थीं, जिसमें आरोप लगाया गया था कि नामित न्यायाधीश ने राज्य में संबंधित अतिरिक्त जिला न्यायाधीश और उसी उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को (जिन्हें एक निजी कंपनी द्वारा शिकायतकर्ता के विरुद्ध दायर मुकदमे से निपटना था) उस कंपनी के पक्ष में प्रभावित किया था।

यह आरोप लगाया गया था कि निजी कंपनी पहले नामित उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की मुवक्किल थी, जबकि वह बार में अधिवक्ता के रूप में वकालत कर रहे थे। लोकपाल ने अपने आदेश में कहा था,“हम यह स्पष्ट कर देते हैं कि इस आदेश के माध्यम से हमने एक विलक्षण मुद्दे पर अंतिम रूप से निर्णय लिया है कि क्या संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 2013 के अधिनियम की धारा 14 के दायरे में आते हैं। न अधिक, न कम। इसमें हमने आरोपों के गुण-दोषों पर बिल्कुल भी गौर नहीं किया है।” लोकपाल ने इसके बाद शिकायतों पर सुनवाई चार सप्ताह के लिए टाल दिया था और भारत के मुख्य न्यायाधीश से मार्गदर्शन का इंतजार कर रहा था।

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