Farmer Suicide Case : प्रदेश पर लगा किसान आत्महत्या का कलंक कभी नहीं मिटेगा; आंकड़ों ने बढ़ाई चिंता, इस विभाग की स्थिति गंभीर

Fri, Jun 28, 2024, 12:08

Source : Hamara Mahanagar Desk

मुंबई. किसानों की आत्महत्या का कलंक (stigma of farmer suicide) राज्य कुछ भी करके नहीं मिटा सकता। सिस्टम, प्रशासन, सरकार सब बुरी तरह फेल हो गए हैं. यवतमाल जिले के किसान साहेबराव करपे पाटिल (Sahebrao Karpe Patil) ने पहली बार 1986 में अपनी पत्नी के साथ आत्महत्या की थी. इसके बाद से आत्महत्या का सिलसिला नहीं रुका है. इस बीच विदर्भ और मराठवाड़ा में किसानों की आत्महत्या ने देश को झकझोर कर रख दिया. अभी भी स्थिति में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है. इस साल आत्महत्याओं की संख्या चिंता बढ़ाएगी.

चार महीने के आंकड़े चिंताजनक हैं
प्रदेश में जनवरी से अप्रैल 2024 तक चार महीनों में किसानों की आत्महत्या के आंकड़े चिंताजनक हैं. चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है कि जनवरी 2024 से अप्रैल तक चार महीनों में 838 किसानों ने आत्महत्या कर ली है. जनवरी में सबसे ज्यादा 235 आत्महत्याएं हुई हैं. फरवरी में 208, मार्च में 215 और अप्रैल में 180 आत्महत्याएं हुईं. प्रारंभिक जानकारी सामने आ रही है कि इन चार महीनों के दौरान हर दिन औसतन 7 किसानों की मौत हुई.

सबसे ज्यादा आत्महत्याएं अमरावती संभाग में
राज्य के अमरावती संभाग में सबसे ज्यादा 383 किसानों ने आत्महत्या की, छत्रपति संभाजीनगर संभाग में 267 किसानों ने आत्महत्या की. 84, नागपुर संभाग में किसानों ने आत्महत्या की है, कोंकण में किसान आत्महत्या की दर शून्य है. सबसे ज्यादा आत्महत्याएं अमरावती और यवतमाल जिले में हुई हैं.

इन चार महीनों में अमरावती में 116, यवतमाल में 108, वाशिम में 77, जलगांव में 62, बीड में 59, छत्रपति संभाजीनगर में 44, धाराशिव में 42, वर्धा में 39, नांदेड़ में 41, बुलढाणा में 18, धुले में 16, और अहमदनगर में 14 किसानों ने आत्महत्या की है.

आर्थिक सहायता का इंतजार है
वहीं 838 में से 171 किसान आत्महत्या के मामले वैध पाए गए. सामने आया है कि सरकार की ओर से अब तक सिर्फ 104 किसानों को ही 1 लाख की आर्थिक मदद दी गई है. 62 किसान आत्महत्या के मामले खारिज कर दिए गए हैं. साथ ही 605 किसान आत्महत्या मामलों में दस्तावेज सत्यापन चल रहा है. चूंकि सरकार प्रदेश में आरोप-प्रत्यारोप और वार-पलटवार की राजनीति में व्यस्त है, इसलिए जन प्रतिनिधियों के पास किसानों के मुद्दों पर ध्यान देने का समय नहीं है? ये सवाल किसान परिवार पूछ रहे हैं.

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