मुंबई. डॉ. डी. वाय. पाटील विश्वविद्यालय (Dr. P. D. Patil University) के कुलपती तथा पिंपरी-चिंचवड में हुए ८९ वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन (All India Marathi Sahitya Sammelan) में स्वागताध्यक्ष, डॉ. पी. डी. पाटील के आज ७१वां जन्मदिवस पर अपने कार्य एवं कुशल नेतृत्व से शिक्षा, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में पहचान बनाने वाले डाॅ. पी. डी. पाटिल उर्फ 'पीडी' सर के कार्य पर डाला.
डॉ. डी. वाय. पाटील विश्वविद्यालय के माध्यम से आजतक लाखों छात्रों को बनाने का कार्य करनेवाले 'पीडी' सर शिक्षाविद के रूप में पूरे देश में जाने जाते है. शिक्षण, साहित्य व संस्कृती की नगरी ऐसी पुणे की पहचान है. तो पिंपरी-चिंचवड को ज्ञानोबा-तुकोबा के वारकरी परंपरा का अध्यात्मिक वारसा मिला है. साथ ही इसे औद्योगिक नगरी भी कहा जाता है. शैक्षणिक-सांस्कृतिक और औद्योगिक नगरी की पहचान बने इस शहर को अगर किसी पहले जाना तो वे है डॉ. पी.डी. पाटील.
पिंपरी स्थित डॉ. डी. वाय पाटील विश्वविद्यालय सहित अन्य शिक्षा संस्थानों का विस्तार, उन्हें मिला वैभव और पुरे विश्व में अग्रणी संस्थान के रूप में मिला प्रतिसाद ख़ुशी की बात है. लेकिन इसके पीछे 'पीडी' सर की कड़ी मेहनत, कई समस्याओ का किया सामना जो आज के पीढ़ी दंतकथा लगे, ऐसे उनका सफर रहा है. अस्सी के दशक में तबके मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटील ने इंजीनियरिंग एवं मेडिकल फिल्ड में प्राईव्हेट शिक्षा संस्थानों को प्रोत्साहन देने की शुरुवात की. तभी डॉ. पी. डी. पाटील ने आगे आकर पिंपरी में इंजिनिअरींग कॉलेज शुरू किया. दिन-रात मेहनत कर उन्होंने एकेक संस्था का निर्माण किया. इस दौरा अनेको अड़चनों का सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने डटकर यह काम शुरू रखा. उसीका फल आज विश्वविद्यालय के रूप में हम देखते है. परिश्रम के ऊपर उनकी श्रद्धा है. जिम्मेवारी की जाणीव उनके मन में है.
सांगली जिले में जन्मे पी. डी. सर पुणे के दापोडी पढ़े और वही बढे. वही उनकी कर्मभूमि भी रही. अपने कर्मभूमि और समाज को हम कुछ देना है, इस भावना से उन्होंने पिंपरी को शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने की ठान ली और उसी राह पर काम किया. 'पीडी' सर ने कभी भी शैक्षणिक संस्थानों के माध्यम से केवल डिग्री देने का संकीर्ण दृष्टिकोण नहीं रखा. शहरीकरण और परिणामी सांस्कृतिक गिरावट की समस्याएँ केवल पुणे या पिंपरी-चिंचवड़ के लिए ही नहीं, बल्कि वर्तमान युग की हैं. इक्कीसवीं सदी में यह प्रश्न और भी गंभीर एवं जटिल रूप धारण कर रहे है. शिक्षण संस्थानों के माध्यम से ऐसी समस्याओं का समाधान कर बदलाव लाने का दृष्टिकोण रखनवाले पी. डी सर हैं.
साहित्य संमेलन बना ‘टर्निग पॉइंट’
वे आध्यात्मिकता और उद्योग को साहित्यिक और कलात्मक मामलों, यानी सांस्कृतिक समृद्धि से जोड़ना अपना कर्तव्य मानते हैं. 'साहित्य में दुनिया को बदलने की ताकत है' यह स्पष्ट अहसास उन्हें है. इसी को ध्यान में लेकर उन्होंने पिंपरी-चिंचवड में पहली बार अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन का भव्य दिव्य आयोजन किया. साहित्य संमेलन केवल इवेंट नहीं, समाज के सभी अंगो को स्पर्श करनेवाला जागृतीपर कार्यक्रम है, यह आदर्श उन्होंने दिया. यह साहित्य संमेलन उनके जीवन का ‘टर्निंग पॉइंट’ हुआ. औद्योगीकरण के कारण शहरीकरण हुआ और यह डर था कि बढ़ते शहरीकरण के कारण साहित्य और संस्कृति जीवित नहीं रहेंगे. पीडी ने अपने कार्यों से दिखाया है कि इस डर को कैसे खत्म किया जा सकता है. उन्होंने पिछले आठ वर्षों में अनेक साहित्यिक गतिविधियों तथा हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर साहित्य के प्रभाव को समझा. जनवरी २०२३ में उन्होंने विश्विद्यालय में १८वे जागतिक मराठी संमेलन वे आध्यात्मिकता और उद्योग को साहित्यिक और कलात्मक मामलों, यानी सांस्कृतिक समृद्धि से जोड़ना अपना कर्तव्य मानते हैं. 'साहित्य में दुनिया को बदलने की ताकत है' यह स्पष्ट अहसास उन्हें है. इसी को ध्यान में लेकर उन्होंने पिंपरी-चिंचवड में पहली बार अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन का भव्य दिव्य आयोजन किया. साहित्य संमेलन केवल इवेंट नहीं, समाज के सभी अंगो को स्पर्श करनेवाला जागृतीपर कार्यक्रम है, यह आदर्श उन्होंने दिया. यह साहित्य संमेलन उनके जीवन का ‘टर्निंग पॉइंट’ हुआ. औद्योगीकरण के कारण शहरीकरण हुआ और यह डर था कि बढ़ते शहरीकरण के कारण साहित्य और संस्कृति जीवित नहीं रहेंगे. पीडी ने अपने कार्यों से दिखाया है कि इस डर को कैसे खत्म किया जा सकता है. उन्होंने पिछले आठ वर्षों में अनेक साहित्यिक गतिविधियों तथा हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर साहित्य के प्रभाव को समझा. जनवरी २०२३ में उन्होंने विश्विद्यालय में १८वे जागतिक मराठी संमेलन का आयोजन किया. महाराष्ट्र और भारत की संस्कृति को पुरे विश्व में जोड़ने का उनका यह दृष्टिकोन महत्त्वपूर्ण है.
अब तक के सफर में पी. डी. सर कई लोगों के संपर्क में आये. सभी को उनके व्यक्तित्व में कई रूप दिखाई दिए. डॉ. पी. डी. पाटिल की संकल्पना से स्थापित डी. वाई. पाटिल विश्वविद्यालय आज के युवाओं के सपनों को सशक्त बना रही है, ऐसा पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था.
ज्ञानपीठ पुरस्कारप्राप्त साहित्यिक डॉ. भालचंद्र नेमाडे 'पीडीं' सर के बारे में बोलते समय कहते है की, '८९ वा अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन आज तक का सबसे सफल सम्मलेन रहा. उन्होंने बनाया 'साहित्य संचित' ग्रन्थ बहुमोल था.सम्मेलन में मिले पैसे उन्होंने आत्महत्या ग्रस्त किसानो के बच्चों के लिए दिए.'
‘डॉ. डी. वाय. पाटील विश्वविद्यालय ने पीडी के नेतृत्व में शिक्षा एवं मेडिकल में की सेवा है, ऐसा ज्येष्ठ शास्त्रज्ञ भारतरत्न प्रा. सी. एन. आर. राव कहते है. ‘डॉ. पी. डी. पाटील की संकल्पना से साकार हुआ विश्वविद्यालय एक अनुकरणीय संस्था एवं शैक्षिक मॉडेल है, ऐसा पद्मविभूषण, शास्त्रज्ञ डॉ.
पीडी सर को पिछले ४० सालो से पहचानता हूं. उन्होंने बड़े परिश्रम से इन संस्थाओ का निर्माण किया है. उनका यह सफर प्रेरक है. अमेरिका प्रेजिडेंट जो बायडन ने भी उनके कार्य का गौरव किया, ऐसा अमेरिका स्थित वरिष्ठ शास्त्रज्ञ डॉ. मॅक जावडेकर बताते है.
पीडी जैसा मित्र पाकर भाग्यशाली हूं. शिक्षाविद् के रूप में पीडी भारत में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने में अग्रणी नाम हैं. उन्होंने उच्च पीडी जैसा मित्र पाकर भाग्यशाली हूं. शिक्षाविद् के रूप में पीडी भारत में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने में अग्रणी नाम हैं. उन्होंने उच्च शिक्षा में गुणवत्ता के मानक स्थापित किये हैं, ऐसा शिक्षाविद् डॉ. वेद प्रकाश मिश्र कहते हैं.
जगप्रसिद्ध शास्त्रज्ञ डॉ. रघुनाथ माशेलकर कहते है, शिक्षा क्षेत्र में छात्रों का उज्वल भविष्य बनाने के लिए डॉ. पीडी पाटील ने अपना जीवन समर्पित किया है. शिक्षण, साहित्य, समाजसेवा, अध्यात्म जैसे क्षेत्र में उनका योगदान अहम् है.
डॉ. स्मिता जाधव पीडी सर की पुत्री है. ख़ुशी की बात यह है की उनका भी आज ही जनमंदिन है. पिता और बेटी का जन्मदिन एक ही दिन आना यह एक ईश्वरी संजोग है. वह डॉ. डी. वाय. पाटील विश्वविद्यालय की प्र-कुलगुरू और विश्वविद्यालय सोसायटी की सचिव है. पी. डी. सर के साथ पूरी ताकद से स्मिताताई विश्वविद्यालय का काम संभल रही है. देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक के कुलपति के रूप में, डॉ. स्मिता का काम उल्लेखनीय है. 'व्हिजनरी यंग लीडर' के रूप में उन्हें जाना जाता है. इक्कीसवे शतक में शिक्षा का केन्द्रस्थान युवा है. उस पृष्ठभूमि में उनका शैक्षिक नेतृत्व इस समय के लिए उपयुक्त है. वह काम में समावेशिता और नवीनता का एक नया दृष्टिकोण लेकर आए हैं. विश्वविद्यालय के प्रति उनका गतिशील दृष्टिकोण और अटूट समर्पण छात्रों और शिक्षकों के लिए समान रूप से प्रेरणादायक है। आज के इस आनंद दिलानेवाले मौके पर पीडी पाटिल सर और स्मिताताई को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाए.
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Thu, Feb 22 , 2024, 12:19 PM