बारसु में जियोग्लिफ्स की जगह छोड़कर होगा भूमि अधिग्रहण
मुंबई। रत्नागिरी जिले की राजापुर तहसील के बारसु में स्थानीय लोग रिफाइनरी परियोजना (refinery project) का भले ही विरोध कर रहे है, लेकिन सरकार का इरादा वहां प्रोजेक्ट लगाने का है। उद्योग मंत्री उदय सामंत ने विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में कहा कि रिफाइनरी परियोजना लगाते वक्त पुरातत्व विभाग की नीतियों पर विचार करते हुए कातल शिल्प geoglyphs (जियोग्लिफ्स) की जगह को छोड़कर जमीन अधिग्रहण किया जाएगा।
विधानसभा में बाला साहेब थोरात, नाना पटोले, असलम शेख, अमीन पटेल सहित अन्य सदस्यों के पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में मंत्री उदय सामंत (Uday Samant) ने परियोजना पर आगे बढ़ने के संकेत दिए। मंत्री ने इस बात को आंशिक रूप से सही बताया कि बारसु में परियोजना लगाने से यूनेस्को नॉमिनेटेड कतल शिल्प (जियोग्लिफ्स) खतरे में पड़ सकती है। उन्होंने कहा कि इसके लिए पुरातत्व विभाग की नीति को ध्यान में रखते हुए जियोग्लिफ्स के हिस्से को छोड़कर भूमि अधिग्रहण किया जाएगा। मंत्री ने इस बात को सही माना कि ग्रीन रिफाइनरी परियोजना का स्थानीय लोगों ने विरोध किया है। स्थानीय लोग परियोजना की वजह से जमीन जाने की वजह से विरोध कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि साइट पर निर्माण कार्य और रासायनिक प्रतिक्रिया चट्टानों पर बनी नक्काशियों को नष्ट कर सकती है।
उन्होंने कहा कि रत्नागिरी रिफाइनरी व पेट्रोकेमिकल कंपनी की तरफ से 24 अप्रैल 2023 से 12 मई 2023 तक बारसु में मिट्टी का परीक्षण किया गया। परियोजना का विरोध कर रहे लोगों पर 25 अप्रैल को लाठीचार्ज किया गया? विधायकों के इस सवाल पर मंत्री ने कहा कि ग्रामीणें पर लाठीचार्ज नहीं किया गया। साथ ही घटना का कवरेज करने आए पत्रकारों को बाहर नहीं निकाला गया। उदय सामंत ने कहा कि 27 अप्रैल 2023 को रिफाइनरी समर्थक और विरोधियों की पर्यावरण विशेषज्ञों के साथ बैठक हुई। इस बैठक में रत्नागिरी रिफाइनरी पेट्रोकेमिकल लिमिटेड कंपनी के बारे में शंका, शिकायतों सहित पर्यावरण को लेकर गलतफहमी को दूर करने का प्रयास किया गया।
जियोग्लिफ्स क्या है?
जियोग्लिफ्स एक प्रागैतिहासिक रॉक आर्ट का रूप है। यह कला चट्टानी जमीन पर उकेरी जाती है। बारसु के जियोग्लिफ्स यूनेस्को की विश्व धरोहर की एक अस्थायी सूची में शामिल हैं। मध्य पाषाण युग में लेटराइट चट्टान पर उकेरे गए चित्र तकरीबन 20 हजार साल पुराने माने जाते हैं। उन्हें मानव सभ्यता के सबसे पुराने भौतिक साक्ष्य भी कहा जाता है। बारसु के आसपास 250 स्थानों पर जियोग्लिफ्स की पहचान की गई है। यूनेस्को की सूची में उन्हें कोकण जियोग्लिफ्स नाम दिया गया है। मध्य प्रदेश के भीमबैठिका में भी रॉक आर्ट हैं, लेकिन ये दीवार पर उकेरे गए हैं, ऐसे में उन्हें पेट्रोग्लिफ्स कहा जाता है। पेरू और यूएसए में जियोग्लिफ्स की साइट है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में देवताओं को रिझाने के लिए चट्टानों पर ये चित्र उकेरे जाते थे।
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Sat, Jul 22 , 2023, 07:36 AM