Fossils Found: जैसलमेर में करोड़ों वर्ष पुराने डायनासोर जैसे प्राणी के जीवाश्म मिले!

Fri, Aug 22 , 2025, 07:57 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

जैसलमेर: राजस्थान में भौगालिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जैसलमेर जिले के फतेहगढ़ उपखंड के मेघा गांव में तालाब की खुदाई के दौरान गुरुवार को ऐसे अवशेष मिले हैं जो करोड़ों वर्ष पहले उड़ने वाले शाकाहारी डायनासोर के हो सकते हैं। अवशेष मिलने की सूचना पर फतेहगढ़ के उपखंड अधिकारी और तहसीलदार भी मौके पर पहुंचे और निरीक्षण किया। 

प्रारंभिक जांच के बाद जिला प्रशासन ने इसकी सूचना उच्चाधिकारियों को भेज दी है। अब इस मामले में पुरातत्व विभाग (एएसआई) और भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण के दल जांच करेंगे। उत्खनन और वैज्ञानिक परीक्षण के बाद ही इन अवशेषों के सही स्वरूप और कालखंड की पुष्टि हो सकेगी।

जैसलमेर के वरिष्ठ भूगोल शास्त्री, वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक एवं भूजल विभाग के प्रभारी डॉ नारायण इनिखिया आज मौके पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि फतेहगढ़ उपखंड के मेघा गांव में तालाब के किनारे हड्डीवाले जीवाश्म मिले हैं जो करोड़ों वर्ष पुराने हो सकते हैं। प्रारम्भिक अनुसंधान से पता चलता है कि आठ से 10 फुट लंबे किसी जीव एवं उसके पंखों के अवशेष हैं जो सम्भवत: उड़ने वाले शाकाहारी डायनासोर के हो सकते हैं।

उन्होंने मौके का निरीक्षण करके बताया कि यह अवशेष जुरैसिक काल से संबंधित हैं और ये 18 करोड़ वर्ष पुराने डायनासोर या उसके समकक्ष प्रजाति के जीवाश्म हो सकते हैं। वैसे जो संरचना मिली है, वह हड्डीवाले जीवाश्म जैसी प्रतीत होती है। प्रथम दृष्टया यह ढांचा छह से सात फुट का हो सकता है। हालांकि उन्होंने साफ किया कि अभी इसे सीधे डायनासोर घोषित करना जल्दबाजी होगी, लेकिन यह संरचना निश्चित ही किसी प्राचीन जीव की है। उनके अनुसार पूर्व में भी जैसलमेर के आकल और थईयात क्षेत्रों में डायनासोर से जुड़े अवशेष मिल चुके हैं, जिनकी वैज्ञानिक पुष्टि हो चुकी है। 

ऐसे में यह प्रबल संभावना है कि फतेहगढ़ क्षेत्र में मिला ढांचा भी उसी कालखंड से संबंधित हो सकता है। इनिखिया ने बताया कि मौके की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करके जिला कलेक्टर को भेजी जा रही है। इसके बाद भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण और पुरातत्व विभाग के संयुक्त दल मौके पर आएंगे। वैज्ञानिक उत्खनन और नमूनों के परीक्षण के बाद ही इन अवशेषों की जानकारी सामने ला पाएंगे। अगर ये वास्तव में डायनासोर के अवशेष साबित होते हैं, तो यह खोज जैसलमेर को एक बार फिर वैज्ञानिक मानचित्र पर स्थापित कर देगी।

राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के सेवानिवृत्त वरिष्ठ भूविज्ञानी प्रोफेसर डी. के. पांडे ने कहा कि डॉ. नारायण इनाखिया से प्राप्त भूवैज्ञानिक क्षेत्रीय तस्वीरों के आधार पर, ऐसा प्रतीत होता है कि जैसलमेर के दक्षिण में मेघा गांव के पास एक कशेरुकी जीवाश्म खोजा गया है, जो संभवतः एक सरीसृप का है। आसपास की चट्टानों के अवलोकन और प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह जीवाश्म लाठी संरचना का हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि हालांकि यह संभावना कम ही है कि यह नमूना उप-हालिया या हालिया जलोढ़ का हो सकता है। 

फिर भी, आसपास की चट्टान संरचनाओं की प्रकृति और क्षेत्र में कई लकड़ी के जीवाश्मों की उपस्थिति को देखते हुए, सभी साक्ष्य इसे लाठी संरचना के भीतर रखने का समर्थन करते हैं। पांडे ने कहा कि यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण खोज है, क्योंकि यह पहली बार है जब गैर-समुद्री लाठी संरचना में एक सरीसृप जीवाश्म मिला है। फिर भी, यह सुनिश्चित करने के लिए स्थल पर जांच करना उचित होगा कि जीवाश्म किसी हालिया भूवैज्ञानिक क्षितिज से नहीं है।

सबसे पहले इन जीवाश्म को देखने वाले मेघा गांव के मुकेश पालीवाल एवं सुरेंद्र सिंह ने बताया कि तालाब की खुदाई के दौरान मजदूरों को एक बड़ा हड्डीनुमा ढांचा दिखाई दिया। इसके साथ ही वहां कुछ ऐसे पत्थर भी मिले हैं, जो पूरी तरह से जीवाश्म की शक्ल ले चुके हैं। यानी ये पत्थर अब लकड़ी जैसे कठोर हो चुके हैं। 

विशेषज्ञों का कहना है कि ये अवशेष लाखों-करोड़ों साल पुराने हो सकते हैं और इनका संबंध डायनासोर काल से हो सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार जैसलमेर का यह क्षेत्र डायनासोर बेसिन हो सकता हैं, यहाँ पर लगातार मिल रहे जीवाश्मों के अवशेषों के को देखते हुए कच्छ बेसिन से लगते इस सिस्टर बेसिन में और भी डायनासोर की प्रजातियों के अवशेष मिल सकते हैं।

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