NCERT Module Sparks Row : भारत का विभाजन देश के इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं (most painful events) में से एक माना जाता है। हर साल 15 अगस्त को, जब देश स्वतंत्रता और गौरव के साथ अपना स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) मनाता है, यह हमें 1947 के विभाजन की भी याद दिलाता है, जिसने करोड़ों लोगों के जीवन को झकझोर कर रख दिया था, लाखों लोग बेघर हो गए थे, कई लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और समाज की संरचना (structure of society) हमेशा के लिए बदल गई थी।
इस ऐतिहासिक त्रासदी की गहराई और जटिलता को छात्रों तक पहुँचाने के लिए, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने एक नया शैक्षिक मॉड्यूल पेश किया है। इसे 14 अगस्त को, विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (Partition Horrors Remembrance Day) के अवसर पर जारी किया गया। इसका उद्देश्य छात्रों को विभाजन के कारणों और इसमें भूमिका निभाने वाले प्रमुख लोगों को समझने में मदद करना है।
व्यापक दृष्टिकोण की ओर एक कदम
पहले जहाँ विभाजन की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से मोहम्मद अली जिन्ना पर डाली गई थी, वहीं एनसीईआरटी का यह नया मॉड्यूल इसके लिए तीन प्रमुख दलों को ज़िम्मेदार ठहराता है:
NCERT new modules blame Congress for partition, say leaders 'underestimated Jinnah' and failed to foresee horrors
— ANI Digital (@ani_digital) August 16, 2025
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मोहम्मद अली जिन्ना: जिन्होंने मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र की माँग करके सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस: विशेष रूप से नेहरू और पटेल के नेतृत्व में, गृहयुद्ध से बचने के लिए विभाजन को स्वीकार कर लिया।
लॉर्ड माउंटबेटन: भारत के अंतिम ब्रिटिश वायसराय, जिन्होंने इस पूरी प्रक्रिया को जल्दबाज़ी में पूरा करके अराजकता फैला दी।
यह मॉड्यूल माउंटबेटन द्वारा ब्रिटेन के बाहर निकलने की तारीख जून 1948 से 15 अगस्त 1947 चुनने के फैसले की आलोचना करता है। इस जल्दबाजी के कारण रेडक्लिफ रेखा ठीक से नहीं खींची गई और लाखों लोग यह समझ नहीं पाए कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में। एनसीईआरटी के अनुसार, इस अराजकता ने हिंसा और विस्थापन को और बढ़ा दिया।
क्या विभाजन को रोका जा सकता था?
यह मॉड्यूल यह भी दर्शाता है कि भारत का विभाजन अपरिहार्य नहीं था। यह इसे परिस्थितियों और गलतफहमियों का परिणाम मानता है। अगर राजनीतिक मजबूरियाँ और सांप्रदायिक तनाव न बढ़े होते, तो विभाजन को रोका जा सकता था।
हालाँकि महात्मा गाँधी विभाजन के विरुद्ध थे, कांग्रेस ने इसे एक कठिन लेकिन ज़रूरी फ़ैसला माना। नेहरू ने इसे "बहुत बुरी स्थिति" कहा, लेकिन गृहयुद्ध से बेहतर विकल्प बताया। पटेल ने इसे देश के लिए "कड़वी दवा" माना।
वर्तमान पर प्रभाव
एनसीईआरटी के अनुसार, विभाजन का प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है। भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव, कश्मीर विवाद, बढ़ता रक्षा खर्च और सांप्रदायिक विभाजन, ये सभी विभाजन की प्रतिध्वनियाँ हैं जो हमारे समाज और राजनीति को प्रभावित करती रहती हैं।
शिक्षा में महत्व
एनसीईआरटी का यह नया मॉड्यूल (new module of NCERT) न केवल छात्रों को ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में बताता है, बल्कि यह भी बताता है कि कठिन समय में लिए गए फ़ैसले आने वाली पीढ़ियों की सोच और दिशा को कैसे प्रभावित करते हैं। विभाजन की विभीषिका पर एनसीईआरटी के नए मॉड्यूल पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने कहा, "मैं एनसीईआरटी को विभाजन पर चर्चा की चुनौती देता हूँ। आज उनके (भाजपा के) नियंत्रण में एनसीईआरटी है; उन्हें विभाजन के बारे में कुछ भी नहीं पता।"
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Sat, Aug 16 , 2025, 03:19 PM